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समाज के उच्च आदर्श, मान्यताएं, नैतिक मूल्य और परम्पराएँ कहीं लुप्त होती जा रही हैं। विश्व गुरु रहा वो भारत इंडिया के पीछे कहीं खो गया है। ढून्ढ कर लाने वाले को पुरुस्कार कुबेर का राज्य। (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Friday, July 15, 2016

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता 
समान नागरिक संहिता भले ही आज समय की मांग है, एक सूत्र में पिरोने की। 
किन्तु इसमें समस्या यह है कि विगत में स्वतंत्रता के आरम्भ से ही समाज को 
एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करने के स्थान पर बहुलता वादी समाज के नाम पर 
संविधान को खिलोने की भाँति प्रस्तुत कर खिलवाड़ करने का चलन चला गया। 
इसी कारण भारत जैसे बहुलता वादी देश में समान नागरिक संहिता लागू करना 
सरल भी नहीं है। 
कई नस्लीय जनजातियां, विभिन्न संप्रदाय, जातियां और समुदाय हैं। हिंदुओं के 
अंदर भी कई भांति भांति की स्थानीय प्रकार की पारिस्थितिक प्रथाएं चालू हैं। इन 
सब के बाद भी संविधान निर्माताओं ने हिंदुओं पर समान कानून बनाए। विभिन्न 
प्रथाओं के बाद भी मूल रूप से पूरा समाज ऐसे जुड़ा है जैसे शरीर के भिन्न भिन्न 
अंग प्रत्यंग एक ही शरीर के विभिन्न भाग हैं। 
समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव पर जन सुनवाई और सर्वदलीय बैठक में 
राजनैतिक दलों का समर्थन ही आगे जाकर आम सहमति दिला सकेगा। इस मुद्दे पर 
आगे का एकमात्र मार्ग सर्वसम्मति से ही स्थापित होना है। समझदारी है कि पहले 
विधि आयोग इस पर भी ध्यान कर जन सुनवाई में सभी समूहों से चर्चा करे ताकि 
विधि आयोग को साझा प्रस्ताव के साथ सामने आने को मिले। 
यह पग इस दृष्टी से महत्त्व का है कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा था कि वह 
मौखिक तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता पर किसी निर्णय से पूर्व व्यापक चर्चा 
पसंद करेगा। कई लोगों का मानना है कि मुसलमान अपनी पत्नियों को मनमाने 
ढंग से तलाक देने के लिए तिहरे तलाक का दुरूपयोग करते हैं। तब इन चीजों 
में सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलायी जानी चाहिए। 
बात केवल तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता की ही नहीं है जैसे अपितु विविधता 
भरे हिन्दू समाज होने पर भी कानून को हिंदुओं पर समान रूप से लागु किया गया, 
इस पर भी वह विविधता समाप्त नहीं हो गई, अनेकता में एकता का गौरवपूर्ण पक्ष 
हमारे लिए सदा के लिए प्रत्यक्ष उदहारण बनकर खड़ा है। 
समान नागरिक संहिता का यही नियम मुस्लिम तथा अन्यों को भी उसी प्रकार एक 
सूत्र में पूरे समाज को जोड़ कर रख सकता था। किन्तु विविधता बनाए रखने के नाम 
पर जिस प्रकार हिन्दू कानून मुस्लिम कानून बनाए गए.उसने एकता के बदले अलगाव 
का भाव ही बनाया और राजनैतिक तुष्टिकरण का मार्ग खोलकर सामाजिक विखंडन 
का मार्ग प्रशस्त किया। आज यह समस्या जटिल रोग होकर असाध्य लगता है। 
समय पर उपचार किया जाता तो उचित था किन्तु विलम्ब से सही, शुभस्य् शीघ्रम। 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
 इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक

Monday, July 11, 2016

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी ! 
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नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है। 
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
http://shikshaadarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html
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Friday, July 8, 2016

संघ के प्रांत प्रचारकों की वार्षिक बैठक 11 जुलाई से कानपुर में

संघ के प्रांत प्रचारकों की वार्षिक बैठक 11 जुलाई से कानपुर में 

संघ के प्रांत प्रचारकों की बैठक 11 जुलाई से कानपुर मेंयुदस। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारकों की वार्षिक बैठक 11 से 15 जुलाई तक कानपुर में होगी जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत संघ के सभी प्रमुख पदाधिकारी भाग लेंगे। संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख मोहन अग्रवाल ने बताया कि 11 जुलाई से बिठूर में प्रांत प्रचारकों की बैठक होगी। प्रांत प्रचारकों की यह बैठक प्रत्येक वर्ष जुलाई माह में देश के किसी भी शहर में आयोजित होती है। इस बार यह कानपुर में आयोजित हो रही है। इसमें शारीरिक, बौद्धिक सामाजिक सरोकार और सामूहिक चर्चा के कार्यक्रम होंगे। 
इसमें देश भर से आने वाले प्रांत प्रचारक शामिल होंगे। दूसरे चरण की बैठक में संघ के प्रांत प्रचारकों के अतिरिक्त संघ से जुड़े अन्य संगठनों जैसे विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, विद्या भारती, भारतीय मजदूर संघ और आरोग्य भारती जैसे 40 सहयोगी संगठनों के पदाधिकारी भाग लेंगे। तीसरे चरण की बैठक में केवल संघ के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी शामिल होंगे, जो दोनो चरणों की बैठकों की समीक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रांत प्रचारकों की इस बैठक में कोई प्रस्ताव या नीतिगत निर्णय नही होते हैं। इस बैठक में प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय पदाधिकारी तथा विविध कार्यों के प्रमुख कार्यकर्ता समेत प्राय: 150 लोग शामिल होंगे। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत, सह कार्यवाह भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी के सहित संघ के प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। अग्रवाल ने कहा चूंकि यह संघ के प्रचारकों की बैठक होती है, इसलिये इसमें मीडिया को प्रवेश नहीं होता है। उनसे पूछा गया कि ऐसी अटकलें हैं कि संघ की इस बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी आ रहे हैं तो उन्होंने इस प्रकार की किसी भी जानकारी को नकार दिया। 
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Thursday, July 7, 2016

समान नागरिक संहिता का चुनाव से संबंध नहींः प्रसाद

समान नागरिक संहिता का चुनाव से संबंध नहींः प्रसाद 
समान नागरिक संहिता का चुनाव से संबंध नहींः प्रसादनदि तिलक। विधि मंत्रालय का आज कार्यभार संभालते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने के विषय को विधि आयोग को भेजने का उत्तर प्रदेश में आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से कोई संबंध नहीं है। विधि मंत्री ने कहा, ‘‘इसे चुनाव से नहीं जोड़ें। उत्तराखंड में भी चुनाव होने हैं.. यह तथ्य है कि संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता की बात करता है। उच्चतम न्यायालय ने समय समय पर समान नागरिक संहिता के बारे में व्यवस्था दी है.. यह हमारे (भाजपा) चुनाव घोषणापत्र में भी है।’’ 
समान नागरिक संहिता के बारे में संवाददाताओं के कई प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कहा, ''इस बारे में व्यापक विचार विमर्श किये जाने की आवश्यकता है। विधि आयोग से विचार विमर्श करने को कहा गया है। वह जो भी रपट प्रस्तुत करेगा, वह उसके विवेकाधिकार का मामला है।’’ 
विधि मामलों के विभाग ने गत माह आयोग से समान नागरिक संहिता पर एक रपट प्रस्तुत करने को कहा था जो भाजपा और संघ परिवार के लिए सदा महत्त्व का विषय रहा है। इस पहल को ऐसे समय में महत्वपूर्ण माना जा रहा है जब उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि वह ‘तीन बार तलाक’ की संवैधानिक वैधानिकता पर कोई निर्णय करने से पूर्व व्यापक सार्वजनिक चर्चा चाहती है। इस बारे में कई लोगों की शिकायत है कि इसका दुरूपयोग करते हुए मनमाने ढंग से पत्नियों को तलाक दिया जाता है। इस पहल का भाजपा ने स्वागत किया है जबकि मुस्लिम मजलिस और कुछ कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया है। 
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Monday, July 4, 2016

बलि चढ़ाना, बलिदान नहीं :इरफान

बलि चढ़ाना, बलिदान नहीं :इरफान Image result for अभिनेता इरफान खानजयपुर: इरफान खान भले ही फिल्म अभिनेता हैं धर्म गुरु नहीं। किन्तु धार्मिक ठेकेदारों द्वारा कुर्बानी के नाम से बलि चढ़ाने की कुप्रथा को रोकने का प्रयास कैसे अनुचित है जिस पर कहा गया की उन्हें धार्मिक ज्ञान नहीं है और उन्हें कुर्बानी या रमजान पर सवाल उठाने से पहले किसी धर्मगुरू से संपर्क कर इसके बारे में सीखना चाहिए था।’ बलि से जुड़े अपने वक्तव्य पर मिल रही आलोचना का उत्तर देते हुए कहा है कि वह धर्मगुरुओं से नहीं डरते क्योंकि वह धार्मिक ठेकेदारों द्वारा चलाए जा रहे देश में नहीं रहते हैं। दो दिन पूर्व इरफान ने जयपुर में बकरीद पर होने वाली कुर्बानी प्रथा पर प्रश्न उठाये थे। उनकी प्रश्न उठाती हुई इस टिप्पणी पर कुछ धर्मगुरुओं ने कटु शब्दों में उन्हें अपने काम पर ध्यान देने को कहा है। किन्तु इरफान ने शनिवार को इसके उत्तर में फेसबुक पर लिखी एक पोस्ट में कहा कि वह धर्मगुरुओं द्वारा चलाए जाने वाले देश में नहीं रह रहे हैं। इरफान ने लिखा ‘कृपया भाइयों, जो भी मेरे बयान से दुखी हैं, या तो आप आत्मविश्लेषण के लिए तैयार नहीं हैं, या फिर आपको निष्कर्ष तक पहुंचने की बहुत जल्दी है। मेरे लिए धर्म व्यक्तिगत आत्मविश्लेषण है, यह करुणा, ज्ञान और संयम का स्रोत है, यह रूढ़ीवादिता और कट्टरता नहीं है। धर्मगुरुओं से मुझे डर नहीं लगता। शुक्र है भगवान का कि मैं धर्म के ठेकेदारों द्वारा चलाए जाने वाले देश में नहीं रहता।’ बता दें कि अपनी आगामी फिल्म 'मदारी' के प्रचार हेतु यपुर पहुंचे इरफान  नेपत्रकारों से बातचीत में कहा 'जितने भी रीति-रिवाज, त्यौहार हैं, हम उनका सही अर्थ भूल गए हैं, हमने उनका तमाशा बना दिया है। कुर्बानी एक प्रमुख त्यौहार है। कुर्बानी का अर्थ बलिदान करना है। किसी दूसरे की बलि चढ़ा करके मैं और आप भला क्या बलिदान कर रहे हैं?' इरफान ने कहा था कि 'जिस समय यह प्रथा चालू हुई होगी, उस समय भेड़-बकरे भोजन के मुख्य स्रोत थे। सभी लोग थे जिन्हें खाने को नहीं मिलता था। उस समय भेड़-बकरे की बलि एक प्रकार से अपनी कोई प्रिय वस्तु की बलि करना और दूसरे लोगों में बांटना था। आज के समय में बाजार से दो बकरे खरीद कर लाए तो उसमें आपकी कुर्बानी क्या है। हर आदमी दिल से पूछे, किसी और की जान लेने से उसे कैसे सवाब मिल जाएगा, कैसे पुण्य मिलेगा।' 
'इस्लाम को बदनाम करने वालों के नाम फतवा' 
अपनी बात पूरी करते हुए इरफान ने कहा कि 'जो फतवा देने वाले लोग हैं, उन लोगों को इस्लाम के नाम को बदनाम करने वालों के खिलाफ फतवा देना चाहिए। उनके खिलाफ देना चाहिए जो आतंकवाद की दुकान चला रहे हैं, जिन्होंने आतंकवाद के धंधे खोल रखे हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं किसी ऐसे देश में नहीं रहता जहां धार्मिक कानून चलता है। मुझे इस पर गर्व है।' 
इरफान के इस वक्तव्य पर कुछ इस्लामिक जानकारों ने आपत्ति जताई। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयपुर के शहर काजी खालिद उस्मानी ने कहा था ‘इरफान अभिनेता हैं और उन्हें सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें धार्मिक ज्ञान नहीं है और उन्हें कुर्बानी या रमजान पर सवाल उठाने से पहले किसी धर्मगुरू से संपर्क कर इसके बारे में सीखना चाहिए था।’ उन्होंने कहा कि इस्लाम अस्पष्ट नहीं है और इरफान को अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए। जयपुर के इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल लतीफ ने कहा है कि इरफान कलाकार हैं कोई  धार्मिक मामलों के गुरु नहीं। उन्होंने जो कुछ कहा, उसका कोई महत्व नहीं है और उन्हें अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए था। 
यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ मेरे 5 दशक के काव्य लेखन व पत्रकारिता के काल में मनोज कुमार के अतिरिक्त कभी किसी कलाकार के व्यक्तिगत चिंतन को विषय नहीं बनाया। फिल्म समीक्षा में कथानक फिल्मांकन तथा सामाजिक पक्ष पर ही लिखा है। ले http://jeevanshailydarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post.html 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक