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Sunday, November 4, 2012

भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश

भारत की वर्तमान दुर्दशा के कारण व निवारण / भा (1)
भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश 
(विवेकानंद स्टडी सर्कल, आईआईटी मद्रास. के तत्वावधान में जनवरी 1998 में दिए गए एक भाषण से अनुकूलित)  कृ इसे पूरा पढ़ें, समझें व जुड़ें
परिचय भूमिका 
ईस्ट इंडिया कंपनी और ततपश्चात, ब्रिटिश शासन में, लगता है शासकों के मन में दो इरादे काम कर रहे थे इस देश के मूल निवासी के धन लूटना और सभ्यता को डसना हम देखें, इन को प्राप्त करने के लिए, ब्रिटिश ने इतनी चतुराई से चाल चली है, व पूरे राष्ट्र पर सबसे बड़ा एक सम्मोहन बुना, कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम, अभी भी व्यामोह कीस्थिति से निकलने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं
संभवत: हम में से बहुत से भारतीयों को पता ही नहीं है, कि ब्रिटिश के यहाँ आने तक भारत विश्व का सबसे धनी देश था जबकि पहले विश्व निर्यात के रूप में भारत के 19% अंश के विरूद्ध ब्रिटेन का अंश केवल 9% था, आज हमारा अंश केवल 0.5% है उन्नीसवीं सदी तक कोई यात्री भारत के तट पर आया, उस समय भारत गरीब नहीं पाया गया है, लेकिन विदेशियों में अधिकांश शानदार धन की खोज में भारत आए "मदर इंडिया के बचाव में, एक विदेशी Phillimore का वक्तव्य", "18 वीं सदी के मध्य में, Phillimore ने किताब में लिखा है कि कोई यात्री विदेशी व्यापारियों और साहसी लगभग शानदार धन, चन्दन लकड़ी, जो वे वहाँ प्राप्त कर सकता है, के लिए उसके तट पर आया'मंदिर के पेड़ को हिलाना' एक मुहावरा था, कुछ हद तक हमारे आधुनिक अभिव्यक्ति 'तेल के लिए खोज' के समान हो गया है
भारत के गांव में 35 से 50% भूमि भाग, राजस्व से मुक्त थे और कहा कि राजस्व से स्कूलों, मंदिर त्योहारों का आयोजन, दवाओं के उत्पादन, तीर्थयात्रियों का खिलाना, सिंचाई में सुधार आदि चलता रहा है उन अंग्रेजों के लालच ने राजस्व मुक्त भूमि 5के नीचे किया गया था नीचे करने के कारण जब वहाँ एक विरोध रहता था, तब वे भारतीयों को आश्वासन दिया था कि सिंचाई की देखभाल के लिएसरकार ने सिंचाई विभाग बनाने,  एक शिक्षा बोर्ड को शिक्षा का ख्याल रखना होगा आदि। अत: लोगों की पहल व स्वावलम्बन को नष्ट कर दिया गया था लगता था, शासक उनको तंग करने के लिए मिला है उन्होंने पाया कि हालांकि अंग्रेजों ने इस देश पर विजय प्राप्त की थी, यह समाज अभी भी दृढ़ता से अपनी संस्कृति में निहित था वे जान गए कि जब तक यह समाज सतर्क है और यहां तक ​​कि अपनी परंपराओं का गर्व था, सदा उनके 'सफेद आदमी' बोझ 'के रूप में भारी और बोझिल' बना रहेगा उस समय भारत की शिक्षा प्रणाली एक व्यवस्था से बहुत अच्छी तरह से फैली थी, और अपने उद्देश्यों के लिए अप्रभावी बनाया जाना आवश्यक था अब, हम में से अधिकांश को समझाया/भरमाया गया है कि शिक्षा ब्राह्मणों के हाथों में और संस्कृत माध्यम में है, अत: अन्य जातियों को कोई शिक्षा नहीं देता था लेकिन कैसे ब्रिटिश ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया और एक सबसे साक्षर देश का नाम अनपढ़ देशों आया के बारे में तथ्य यहाँ आगे हैं। :- 
अपने भाषणों में महात्मा गांधी ने 1931 में गोलमेज सम्मेलन में कहा, "शिक्षा के सुंदर पेड़ को आप ब्रिटिश के द्वारा जड़ से काटा गया था और इसलिए भारत आज 100 वर्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक अनपढ़ है" इसके तत्काल बाद, फिलिप हार्टोग, जो एक सांसद था, उठ खड़ा हुआ और कहा, "Mr. Gandhi, यह हम है, जो भारत की जनता को शिक्षित किया है। इसलिए आप अपने बयान वापस ले और क्षमा मांगे या यह साबित करें "गांधी जी ने कहा कि वह यह साबित कर सकता हूँ। लेकिन समय की कमी के कारण बहस को जारी नहीं किया गया था। बाद में उनके अनुयायियों में से एक श्री धर्मपाल ने, ब्रिटिश संग्रहालय में जाकर रिपोर्ट और अभिलेखागार की जांच की वह एक पुस्तक प्रकाशित करता है,"द ब्यूटीफुल ट्री" जहां इस मामले में बड़े विस्तार में चर्चा की गई है। ब्रिटिश ने 1820 तक, हमारी शिक्षा प्रणाली के समर्थक वित्तीय संसाधनों को पहले से ही नष्ट कर दिया था एक विनाश कार्य वे लगभग बीस वर्षों से चला रहे थे लेकिन फिर भी भारतीय मांग शिक्षा की अपनी प्रणाली के साथ जारी रखने में बनी रही।  तो, ब्रिटिश सरकार ने इस प्रणाली की जटिलताओं को खोजने का फैसला किया। इसलिए 1822 में एक सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था और ब्रिटिश जिला कलेक्टरों द्वारा आयोजित किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि बंगाल प्रेसीडेंसी के मद्रास में 1 लाख गांव में स्कूल, बंबई में एक स्कूल के बिना एक भी गांव नहीं था, अगर गांव की आबादी 100 के पास रहे तो गांव में एक स्कूल था। इन स्कूलों में छात्रों तथा शिक्षक के रूप में सभी जातियों के थे। किसी भी जिले के शिक्षकों में ब्राह्मणों की संख्या 7% से 48% व शेष अन्य जातियों से थे। इसके अलावा सभी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त होती थी
स्कूलों से बाहर आते समय तक छात्रों में वह प्रतिस्पर्धी क्षमता प्राप्त कर ली जाती थी और अपनी संस्कृति की उचित जानकारी होना और समझने में सक्षम रहता है। मद्रास में एक ईसाई मिशनरी के एक Mr.Bell, भारतीय शिक्षा प्रणाली वापस इंग्लैंड के लिए ले गए। तब तक, वहाँ केवल रईसों के बच्चों को शिक्षा दिया जाती थी और वहाँ इंग्लैंड में आम जनता के लिए शिक्षा शुरू की। ब्रिटिश प्रशासकों ने भारतीय शिक्षकों की क्षमता और समर्पण की प्रशंसा की हम समझ सकते है कि ब्रिटिश जनता को शिक्षित करने के लिए भारत से जनसामान्य शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया वर्तमान प्राथमिक शिक्षा के समकक्ष 4 से 5 वर्ष तक चली हम सभी जानते हैं कि राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा ही महत्वपूर्ण है, न कि केवल कुछ को उच्च शिक्षा मिलती रहे। 
शेष है:- गिरावट का कारण: निम्नतर निस्पंदन विधि. तथा हताशा की जनक मैकाले की प्रणाली ।  
-राजीव दीक्षत-  http://www.youtube.com/watch?v=rcUaUfesoRE
देश की श्रेष्ठ प्रतिभा, प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास | -तिलक संपादक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक

Tuesday, October 16, 2012

नव रात्रि /शक्ति पूजन Nav Ratri (9 Divine Nights) worshiping Goddess of Power

नव रात्रि /शक्ति पूजन (9 Devine Nights),   
व्याख्यान -तिलक राज रेलन,  वरि. पत्रकार, लेखक, चिन्तक, संपादक -युग दर्पण मीडिया समूह, 
वास्तव में "नव -रात्रि" का तात्पर्य है " शिवशक्ति की विशेष नौ रातें" जब शक्ति को सहज जागृत किया जा सकता है यह त्यौहार एक वर्ष में 2 बार मनाया जाता है | एक "चैत्र माह" गर्मियों के आरंभ में, एक बार फिर से "आश्विन माह" सर्दियों के आरंभ में | चेती नवराते को पृथ्वी के आरंभ से तथा शारदीय नवराते को भगवान राम के रावण से युद्ध पूर्व व लंका प्रस्थान हेतु समुद्र पार जाने के समय, शक्ति पूजन इस दिन किया गया मानते हैं 
मेरी व्यक्तिगत सोच है कि पृथ्वी का आरंभ में गर्म होना व प्रकारांतर में शीतल होना, सृष्टि काल के कल्प का एक चक्र है | उसी का लघु रूप ग्रीष्म और शरद है, और दिन रात है जैसे वर्तमान प्रणाली में समय का घंटे, मिनट व सेकण्ड मानते हैं | पहले भारतीय सनातन प्रणाली में घटी और पल थे | (इस लेख के इस अंश पर विशेष टिप्पणी चाहूँगा |)
नवरात्रि का महत्व क्या है?
नवरात्रि के मध्य, सार्वभौमिक माँ, सामान्यतः "दुर्गा," जिसे वास्तव में जीवन के दुखों का हरण करने वाली, दुख हरणी के रूप में जाना जाता है, का इस रूप में भगवान की दिव्य शक्ति/ऊर्जा पक्ष का आह्वान किया जाता है | जिसे "देवी" (देवी) या "शक्ति" (ऊर्जा या शक्ति) के रूप में भी जाना जाता है | यह वह ऊर्जा है, जिसका उपयोग भगवान शिव द्वारा सृजन, संरक्षण और विनाश के लिए है  दूसरे शब्दों में, आप कह सकते हैं कि भगवान स्थिर, शांत रूप नितांत परिवर्तनहीन है और देवी माँ दुर्गा, उसका सक्रिय रूप में सब कुछ करती है | अर्थात एक इसका शांत रूप है दूसरा सक्रीय | इस शांत व सक्रीय के समन्वय व्यापक तत्व को ही अर्ध नारीश्वर कहा जाता है सच कहूँ तो, हमारी शक्ति पूजा का वैज्ञानिक सिद्धांत है कि ऊर्जा अविनाशी है, की फिर से पुष्टि होती है | यह सदा सर्वत्र है, इसे न बनाया जा सकता है, न मिटाया जा सकता है |
क्यों देवी माँ को दंडवत?
हमें लगता है कि यह शक्ति उस जगत जननी देवी माँ, जो सभी की माँ है, का ही एक रूप, और हम में से सभी बच्चे उसके बच्चे है | प्रश्न उठता हैं,"माँ क्यों, क्यों नहीं पिता"  मुझे बस इतना कहना है कि हमें विश्वास है कि भगवान की महिमा, उनकी लौकिक ऊर्जा, उसकी महानता और वर्चस्व तथा सबसे ऊपर, भगवान के मातृत्व पक्ष को इस रूप में दर्शाया जा सकता है | बस एक बच्चे के लिए इस रूप में या उसकी माँ में, इन सभी गुणों को पाना है  इसी प्रकार, हम सभी की माँ के रूप में दिखने वाला भगवान, ऐसा वास्तव में, हिंदू धर्म है और विश्व में यही धर्म है | जो भगवान के मातृ पक्ष को इतना महत्व देता है, क्योंकि हम मानते हैं कि यह माँ के रचनात्मक पक्ष है, पूर्ण है |
एक वर्ष में दो बार क्यों?
हर वर्ष गर्मियों के आरंभ और सर्दियों के आरंभ के जलवायु परिवर्तन और सौर प्रभाव के दो बहुत महत्वपूर्ण संधिकाल/ पड़ाव हैं. क्योंकि इन दो संधिकालों में परमात्मा की शक्ति की पूजा के लिए पवित्र अवसर के रूप में माना गया है:
(1) हम मानते हैं कि यह वह दिव्य शक्ति है, जो पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर भ्रमण करने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है | यही प्रकृति में बाह्य परिवर्तन तथा संतुलन का कारण है अत: इस दिव्य शक्ति को ब्रह्मांड के सही संतुलन को बनाए रखने के लिए, धन्यवाद दिया जाना चाहिए | इस अध्यात्मिक सोच के रहते हम प्रकृति का हर रूप में नमन करते रहे, पाश्चत्य अन्धानुकरण में इसका त्याग होते ही, यहाँ भी प्रकृति का शोषण होने लगा |


अखिल ब्रह्माण्ड के कल्याण व मानव मात्र के सदमार्ग हेतु,, दिव्या शक्ति के सुपुत्रों सम्पूर्ण हिन्दू समाज की सद्चेतना जागृत हो, 
इसके लिए भगवती अपने इन पुत्रों को सद्बुद्धि प्रदान करे, नव रात्र की इन शुभ कामनाओं सहित, तिलक व सम्पूर्ण युग दर्पण परिवार.

(2) प्रकृति में परिवर्तन के कारण हम लोगों के शरीर व मन में व्यापक परिवर्तन होते है, और इसलिए, हमारे शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए, हम सभी परमात्मा से पर्याप्त शक्तियां प्रदान करने के निवेदन हेतु शक्ति की पूजा करते हैं |
9 रात और दिन ही क्यों ?
नवरात्रि को यदि 3 दिन के 3 भाग में विभाजित करें, तो यह सर्वोच्च देवी के 3 विभिन्न पक्षों के प्रति समर्पित है | प्रथम 3 दिनों में, माँ के शक्तिरूप में, दुर्गा का आह्वान, क्रम में हमारे सब अशुद्धता, न्यूनता व दोषों के निवारण हेतु किया जाता है  अगले 3 दिनों, माँ के आध्यात्मिक शक्तियों की प्रदाता, धनलक्ष्मी व कन्या रूपा का आह्वान, तथा वंदन, किया जाता है जिसकी असीम अनुकम्पा से हमें सुख -शांति व अपार धन -धान्य निर्बाध प्राप्त होता रहता है  अंतिम 3 दिनों के अंतिम भाग में विवेक व ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में मां की पूजा की जाती है |  इस क्रम में यह जीवन में चतुर्दिक सफलता की दात्री है  हमें देवी माँ के सभी 3 पक्षों के आशीर्वाद की आवश्यकता है, इसलिए 9 रातों के लिए पूजा. का विधान है 
शक्ति की आवश्यकता क्यों है ?
इस प्रकार, मेरा सुझाव है कि आप नवरात्रि के मध्य "माँ दुर्गा की पूजा" में अपने माता पिता के साथ सहभागी हो सकते हैं  वह आप पर धन, शुभ (मंगलकारी), समृद्धि, ज्ञान, और अन्य दिव्या शक्तियों को प्रदान करेगी, जिससे आप जीवन की हर बाधा को पार कर जायेंगे  याद रखें, इस विश्व में सभी शक्ति अर्थात दुर्गा, की पूजा करते हैं, क्योंकि यहाँ ऐसा कोई नहीं है जो किसी न किसी रूप में शक्ति की कामना कभी भी नहीं करता है |  (ध्यान रहे, आपका सच्चा मित्र कभी, आपको गलत राह दिखने वाला, या अल्प ज्ञान से भटकाने वाला, नहीं, हो सकता, -तिलक, 9911111611)
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक

Saturday, September 29, 2012

अन्ना और रामदेव में अंतर


अन्ना और रामदेव में अंतर
मेरे एक मित्र ने अन्ना और रामदेव के आन्दोलन को एकसा बताते कहा, अन्ना का खेल ख़त्म पहले ही हो चुका था| आज रामदेव का खेल भी ख़त्म हो गया| देश वैसे ही चलता रहेगा, जैसे चलता आ रहा है| हंस दाने चुगते रहेंगे और कौवे मोती खाते रहेंगे| अन्ना कहते थे कि "जब तक प्राण हैं लडूंगा", क्या हुआ? बाबा रामदेव को भी, जब सरकार ने कोई अहमियत नहीं दी तो, उन्होंने ने भी ड्रामा ख़त्म करने में ही अपनी भलाई समझी|

जैसा की मैं पहले भी कहता रहा हूँ अन्ना और रामदेव में अंतर है| ऐसा भी कह सकते हैं, अंतर है उनके आन्दोलन में| एक किरण बेदी को छोड़, पाखंडियों का गिरोह था| मुद्दा भी लोकपाल बिल का पाखंड था, खंड खंड हो गया| दूसरा रामदेव और मुद्दा ठीक थे| लूट का पैसा देश का है, देश में वापस आना चाहिए| इसीने शासकों के पसीने निकाले, तो रामदेव पर दुधारी चलाई गई| एक सामानांतर अन्ना को उठाया, फिर राम लीला मैदान में रावण लीला रची गई|! आज तक शत्रु सेना भी रात को वार नहीं करती, सोते हुए नृशंसता की सीमा पर की गई| जिस अन्ना को झाड़ पर चडाया था, मिशन रावण लीला के बाद उसे भी झाड़ से गिरा दिया गया| मीडिया ने अन्ना के आन्दोलन को उठाया था, रामदेव के आन्दोलन को दबाने में सरकार को सहयोग किया था ! यह है कथित आज़ादी के आजाद मीडिया का सत्य | तिलक , 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया !
इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है,
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,
आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है!
आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक 9911111611. www.yugdarpan.com

Tuesday, September 18, 2012

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश:

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश: ज्ञान और समृद्धि के दाता, भगवान गणेश के जन्म दिन पर, जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है l गणेश चतुर्थी के उत्सव के पाँच, सात या दस दिनों तक होते है l कुछ लोग बीस दिनों तक भी मानते है, किन्तु सबसे लोकप्रिय पर्व दस दिन मनाया जाता है l दाहिने हाथ पथ की परंपरा में पहला दिन सबसे महत्वपूर्ण है l बाएं हाथ पथ परंपरा में अंतिम दिन सबसे महत्वपूर्ण है l 
   गणेश बुद्धि और समृद्धि के देवता है और इस नाते हिंदुओं द्वारा किसी भी शुभ काम का शुभारम्भ श्री गणेश जी की साक्षी में किया है l यह माना जाता है कि आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए उनके आशीर्वाद नितांत आवश्यक है l पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह शिव और पार्वती के पुत्र, उनके भाई बहन है, कार्तिकेय - देवताओं के मुखिया, लक्ष्मी धन की देवी और सरस्वती विद्या की देवी l जिसका वाहन मूषक या चूहा और जिसे मोदक (छोटी बूंद के लड्डू) प्रिय है l हिंदू पौराणिक कथाओं में कई कहानियाँ, हाथी की सूंड में इस भगवान के जन्म के साथ जुड़ हैं l
   किंवदंती है कि पार्वती स्नान के लिए जाती, बाहर चंदन की लोई का पुतला बना, उसमे प्राण संचार करा, बैठा देती l एक दिन जब उसके पति, शिवजी लौटे, एक अपरिचित बालक ने उन्हें रोक दिया l शिवजी ने बच्चे का सिर काटा और घर में प्रवेश किया l पार्वती, यह जानकर कि उसका बेटा मर गया, व्याकुल हो गई और शिवजी से उसे पुनर्जीवित करने के लिए कहा l शिवजीने एक हाथी का सिर काटा और यह गणेश के शरीर पर लगा दिया l
   गणपति गणेश की विशेषताएं:- एक और किंवदंती है कि कैसे एक दिन देवताओं ने अपने नेता को चुनने का निर्णय किया और एक दौड़ भाई कार्तिकेय और गणेश के बीच आयोजित की गई l जो कोई भी पृथ्वी के 3 परिक्रमा पहले ले लिया, गणाधिपति या नेता माना जाएगा l कार्तिकेय अपने वाहन के रूप में एक मोर पर बैठा, गणेशजी के पास एक फुदकता चूहा है l गणेश जी को आभास हुआ कि परीक्षण सरल नहीं था, किन्तु वह अपने पिता की अवज्ञा नहीं करे l यह सोच अपने माता पिता के प्रति आदर व श्रद्धा का भाव रखते हुए और उनके चारों ओर 3 बार प्रदक्षिणा लगाई l  इस तरह कार्तिकेय से पहले परीक्षण पूरा हो गया है l उन्होंने कहा, "मेरे माता पिता, पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है और उनकी प्रदक्षिणा, पृथ्वी की प्रदक्षिणा से अधिक है l" हर किसी को गणेश के तर्क और बुद्धि चातुर्य से सुखद आश्चर्य था और इसलिए उन्हें गणेश, गणाधिपति या नेता, अब गणपति के रूप में जाना जाता है l
गणेश चतुर्थी समारोह
   गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश और भारत के कई अन्य भागों में मनाया जाता है l छत्रपति शिवाजी महाराज, महान मराठा शासक, द्वारा संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था l पश्चिमी शासन के विरुद्ध लोगों को प्रेरित करने, राजनीतिक नेता जो भाषण दिया करते थे, ब्रिटिश ने सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था l इस की पृष्ठभूमि में लोकमान्य तिलक (स्वतंत्रता सेनानी) ने स्वतंत्रता संग्राम के संदेश का प्रसार के लिए, त्योहार को एक सार्वजानिक रूप देकर, भारतीय एकता का अनुभव कर दिया और उनकी देशभक्ति की भावना और विश्वास को पुनर्जीवित किया l यह सार्वजनिक त्योहार इतना लोकप्रिय है कि तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती हैं l
   घरों और सड़क के किनारों में, और गणेश प्रतिमा स्थापित में, व्यापक प्रकाश व्यवस्था, सजावट, दर्पण और फूलों की व्यवस्था कर रहे हैं l पूजा, प्रार्थना (सेवाएं) दैनिक प्रदर्शन कर रहे हैं l कलाकारों जो गणेश की मूर्तियां और अधिक भव्य 10 मीटर से 30 मीटर की ऊंचाई में कर और सुरुचिपूर्ण मूर्तियों बनाने में, एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं l इन मूर्तियों को फिर से सजाया तथा एक, तीन, पांच, सात और दस दिनों के बाद हजारों लोगों के जुलूस द्वारा नगाड़े की थाप, भक्ति गीत और नृत्य के साथ पवित्र मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित किया जाता है l समुद्र तट पर एकाग्र करने के लिए समुद्र में विसर्जित कर देते हैं l समारोह, गणेश महाराज की जय! " (गणेश भगवान की जय). "गणपति बप्पा मोर्य, पुडचा वर्षी लॉकर फिर" (भगवान की जय हो गणेश, जल्द ही फिर से, अगले साल वापसी के मंत्र के साथ, अगले साल वापसी की प्रार्थना के साथ, समाप्त होता है l युग दर्पण मिडिया समूह 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Wednesday, August 29, 2012

मेले कई प्रकार के होते है:

मेले कई प्रकार के होते है: जीवन के मेले में ख़ुशी और गम, कभी मिलते हैं सनम कभी सितम,...
Photo: **परिवर्तन-  नियम *****
भ्रस्टाचार ना कभी पैदा हुआ ना कभी ख़त्म हुआ
परिवर्तन है इसका आधार फिर भी पाता सबका प्यार
हर युग में बदला इसका रूप है कहीं छांव तो कहीं धूप है
हर पल एक नया स्वरुप है हर पल यह वक्त के अनुरूप है
आम आदमी अपने पेट के साथ जल जाता है, मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन, नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
इसने बदली उसने बदली,जिसकी सत्ता उसने बदली
पाया जिसने सबने बदली ,मन तो बस धन की पगली
कलयुग में बन मर्यादा की चरणपादुका घर - घर पूजा जाता है
जो भ्रस्टाचारी हो मसीहा बन जाता है, इन्सान तो अक्सर छल जाता है
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
आचरण -सभ्यता - परम्परा सबकी आत्मा मार चूका है
भ्रस्टाचार पूर्ण रूप से छा चूका है आ चूका है
बहुत कठिन अब लडाई है जन -जन में इसने आग लगायी है
हर कोई बनता अब भ्रस्टाचार का भाई है ना कोई बहन या भाई है
भ्रस्टाचार की आंधी आई है लड़नी हमें हर लडाई है
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
कलम ही कर सकता है इसका सर कलम, जब मिले कलम से कलम
मत खाओ अपने हालत पे रहम, लड़नी तुम्हे लडाई है
भ्रस्टाचार की आंधी आई है, लड़नी हमें हर लडाई है
योगी मन हर प्राणी अब घायल है, भ्रस्टाचार से पागल है
उठो जागो और लड़ो लडाई , भ्रस्टाचार की आंधी आई है !
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम, आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
यह कविता क्यों ? परिवर्तन के साथ आप इतना ना बदल जाये की वक़्त आने पर खुद को भी परिवर्तित ना कर पायें बचिए और बचाइए अपने आप को और सबको भ्रस्टाचार के नियम से !
जय भारत अरविन्द योगी
 देश में भी कई प्रकार के मेले लगते हैं, कई प्रकार का सामान बिकता है जिसे हम खरीद कर ले जाते हैं अपने घर,.. कभी धार्मिक सांस्कृतिक मेले लगते हैं कभी व्यावसायिक मेले लगते हैं , कोई आवश्यक वस्तुओं का मेला तो  कभी सजावट की वस्तुओं का मेला......
 किन्तु वो मेले याद रखने के लिए नहीं होते, यादगार मेले 2 ही हैं एक आज़ादी से पहले लगा था शहीदों का, एक अब लगा है गद्दारों और लुटेरों का !.....
 वतन पे मिटने वालों को शासन थमाया जो होता, राष्ट्र भक्तों को दिल में बसाया होता; तो ऐसा दिन कभी आया न होता, गद्दारों का मेला यूँ सजाया न होता ! .....वन्देमातरम
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया !
इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Tuesday, August 14, 2012

शर्म निरपेक्ष मीडिया और विकल्प

शर्म निरपेक्ष मीडिया और विकल्प 




वन्देमातरम, कई बार 
विपरीत वातावरण से इतने हताश होकर सोचते है, कि क्या इसका कोई विकल्प नहीं ? किन्तु हल इतना पास होता है और हम देख नहीं पाते, जैसे बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा ? सोच कर देखें, यदि कार्टूनिस्ट असीम एक कम्युनिस्ट न होते.... तो क्या राष्ट्रीय मीडिया, इतनी हाय-तौबा मचाता ?
कार्टूनिस्ट असीम के साथ जो हुआ, वो अन्यायपूर्ण है... परन्तु प्रश्न ये है, कि जीवन पर्यन्त देशद्रोह और राष्ट्र-विभाजन की नीतियों पर चलने की शिक्षा पाने और प्रचार करने वाले ये लोग, गिरफ्तारी के समय मीडिया के सामने, देशप्रेमी  देशभक्त कैसे बन जाते हैं ?
याद कीजिये बिनायक सेन को .. बिनायक सेन को भी मीडिया ने, देशभक्त बना कर ही दिखाया था l
आखिर, गिरफ्तारी के समय ही, ये सब वामपंथी, अपने आपको देशभक्त क्यों सिद्ध करते हैं .....?
मोमबत्ती ब्रिगेड की मानसिकता, तो माओ त्से तुंग और मार्क्स की विचारधारा से पोषित होती है l ...जिसमे इन्हें यह सिखाया जाता है कि भारत कोई देश नही है l
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, कर्णाटक, गुजरात, राजस्थान आन्ध्र प्रदेश ओडिशा आदि ये सब कोई सम्पूर्ण राज्य नही हैं ...
वामपंथी विचारधारा .... भा

रत कोई देश नही है, ..... भारत का विभाजन करके 56 नये देश बनाने की शिक्षा सिखाती है l
वामपंथी विचारधारा .... जिसकी अरुंधती राय, एक किताब लिखती है....The Broken Republic.
वामपंथी विचारधारा .... धर्म जिनके लिए अफीम है l
वामपंथी विचारधारा .... जो भारतीय परम्पराओं, रीति रिवाजों को दिन प्रतिदिन पैरों तले रोंदते हैं l
वामपंथी विचारधारा .... जो अपने 33 कोटि के देवी देवताओं से कुछ न सीख पाए, परन्तु ... माओ और मार्क्स, इनके आदर्श भगवान् बनते हैं l
वामपंथी विचारधारा ....जो सम्पूर्ण भारत के मीडिया को नियंत्रित करके, सनातन विरोधी गतिविधियों को छिपा कर, समस्त हिन्दू समाज को अँधेरे में रखता है l
वामपंथी विचारधारा .... जो  मुसलमानों, खालिस्तान, चीन, माओवाद, वेटिकन सहित सभी 
देशद्रोहियों की समर्थक है ....भारत के सब शत्रुओं की मित्र है l 
भारत भूमि के वंशजो,.. देश के नकारात्मक मीडिया का सकारात्मक विकल्प : सार्थक, सटीक, मीडिया; समाचार, विचार, और संस्कार का संगम राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण, + विविध  विषयों  के  25 ब्लाग YugDarpan.blogspot.com, पर, ऑरकुट, फेसबुक और ट्विट पर  तिलक  रेलन  9911111611,9654675533. 

Page view this weak  Oct 6, 2012 8:30 PM – Oct 13, 2012 7:30 PM

विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया !
इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

स्वतंत्रता दिवस पर 'गली गली चोर है',

स्वतंत्रता दिवस पर सभी भारतीयों को युग दर्पण परिवार की और से हार्दिक शुभकामनायें, 
 रक्षा बंधन के दिन; फिल्म, रेशम की डोरी  http://www.youtube.com/watch?v=Kk-zbamC3Is&list=PLEE77F0A6110792A0&index=2&feature=plpp_video , 
एक ऐसी प्रस्तुति जिस में भाई बहन के पवित्र सम्बन्ध की भावनाओं व अपनत्व को बचपन से अंत तक दर्शाता कथानक हो, कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जन्म लीला के पश्चात् अब स्वतंत्रता दिवस पर कर्मा व क्रांति और वर्तमान भ्रष्टाचार के सामयिक विषय पर -'गली गली चोर है', के माध्यम जन जागरण, सभी के लिए उचित रहेगा   http://www.youtube.com/watch?v=z9E0jmKKho4&list=PLEE77F0A6110792A0&index=3&feature=plpp_video
रंगमंच व मनोरंजन के अन्य राग रंग से भरपूर स्वस्थ पारिवारिक कार्यक्रम, जिनमें कहीं घटियापन स्वीकार नहीं ! मनोज कुमार, राजश्री फिल्म, जैसे उच्च स्तर की पारिवारिक व रामानंद सागर की धार्मिक वृति की झलक द्वारा हम आपके ह्रदय में अपना स्थान बनाने का प्रयास करेगे! कहीं समाज हित में निशुल्क सेवा, कहीं कॉपी राइट के दबाव में मनोरंजन शुल्क, कहीं सदा के लिए dvd लेना चाहें तो उनका पता या हमारे द्वारा क्रय सुविधा देते हुए, कुछ अंश दिखाए जा सकते है ! वन्देमातरम ...तिलक. 
http://www.youtube.com/user/DDManoranjan/videos?view=1
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया !
इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक