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समाज के उच्च आदर्श, मान्यताएं, नैतिक मूल्य और परम्पराएँ कहीं लुप्त होती जा रही हैं। विश्व गुरु रहा वो भारत इंडिया के पीछे कहीं खो गया है। ढून्ढ कर लाने वाले को पुरुस्कार कुबेर का राज्य। (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Friday, June 18, 2010

भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)

तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
Comment: Two tragedies, two very different responses
अमरीकी  राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा के उबाल का कमाल: अमेरिका की समुद्र तटीय सीमा पर ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ सहयोगी ट्रांस ओशियन व हैल्लीबर्टन सभी द्वारा तेल निकासी में असावधानी हुई - दुर्घटना घटी ! इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई साथ ही समुद्री कछुए , पक्षी , डालफिन भी मारे गए ! अमेरिकी पर्यटन व मछली उद्योग को भी क्षति पहुंची !इस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उबल पड़े! विदेशी कं. ब्रि.पै. के क्षेत्र के प्रमुख को बुला लिया (व्हाइट हॉउस)! अमेरिका की विदेश नीति व विदेशियों के प्रति उनका व्यवहार सदा ही मेरी आलोचना का पात्र रहे हैं किन्तु उनके नेता अपने देश व देश वासियों के हितों  का समझौता   नहीं  करते  बल्कि  उनके हित  में करार  करने  को बेकरार  होते  हैं! उनका व्यक्तिगत चरित्र भले ही गिर जाये राष्ट्रीय चरित्र सदा प्रदर्शित  हुआ है!
ओबामा  ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
Comment: Two tragedies, two very different responses
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
भोपाल गैस त्रासदी:- वैसे तो 1984 में 2 प्रमुख दुखद घटनाएँ घटी, किन्तु यहाँ एक की तुलना उपरोक्त से की जा सकती है चर्चा में ली जाती है! वह है भोपाल गैस त्रासदी --बताया जाता है इसमें 15000 सीधे सीधे दम घुटने से अकाल मृत्यु का ग्रास बने, 5 लाख शारीरिक विकार व भयावह कष्टपूर्ण अमानवीय यंत्रणा/त्रास /नरक भोगते हुए  मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! तो उनकी अगली पीडी भी इसे भोगने को अभिशप्त होगी! इससे वीभत्स और क्या होगा? इस सब के लिए उनका अपना कोई दोष नहीं था किन्तु दूसरों के दोष का दंड इन्हें भुगतना पड़ा ! क्यों? पशु पक्षियों का हिसाब हम तब लगाते यदि मानव को कीड़े मकोड़े से अधिक महत्व दे पाते? उद्योग/व्यवसाय की हानी तब देखते जब अपनी तिजोरियां स्विस खातों तक न भरी जातीं!एंडरसन को दिल्ली बुला कर कड़े शब्दों में देश/ जनहित का करार करने का दबाव बनाना तो दूर दिल्ली से आदेश भेजा गया उसे छोड़ने का, वह भी पूरे सम्मान के साथ ?
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?

कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
  दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह  बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
 एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी  और 5 दिसंबर को न्यायलय  के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन  किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट  है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं हैअपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Tuesday, May 25, 2010

सुमित के सवाल पर मुझे शर्म आई

ऐसे मजाकिया सवाल पत्रकारिता के गिरे स्तर की ओर इशारा करते हैं : पीसी में 55 पत्रकारों ने सवाल पूछे : 17 सवाल हिंदी में, 2 उर्दू में, शेष आंग्ल भाषा में : आलोक मेहता ने साफ पूछा कि जो लोग एनजीओ बनाकर नक्सलवादियों को मोरल सपोर्ट दे रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई कब होगी? : पीसी समापन की घोषणा होते ही विज्ञान भवन हाल मछली बाजार बन गया : मैं प्रधानमंत्री जी से कुछ पूछने का अधिकारी नहीं, होता तो तीन सवाल पूछता :



सवालों पर भी सवाल
किशोर चौधरी

कहिये! प्रधानमंत्री जी, आपको एक सवाल पूछने की अनुमति दें तो आप क्या पूछेंगे? सवाल सुनकर हर कोई खुश नहीं होता, क्योंकि सवाल हमेशा असहज हुआ करते हैं। वे कहीं से बराबरी का अहसास कराते हैं और सवाल पूछने वाले को कभी-कभी लगता है कि उसका होना जायज है। अमेरिका के राष्ट्रपति जिस देश को गुरु कहकर संबोधित करते हैं, उसके प्रधानमंत्री चुनिंदा कलम और विवेक के धनी राष्ट्र के सिरमौर पत्रकारों के समक्ष उपस्थित थे। खचाखच भरे हुए विज्ञान भवन के हॉल में सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी भी उपस्थित थीं।
प्रधानमंत्री की इस प्रेस कांफ्रेंस में पचपन पत्रकारों ने सवाल पूछे - सत्रह सवाल हिंदी में, दो उर्दू में और शेष आंग्ल भाषा में, जैसा मुझे याद रहा। आठ महिला पत्रकार बाकी सब पुरुष। चार सवाल थे कि पाकिस्तान पर अब विश्वास क्यों है? एक सवाल था सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का क्या होगा? छह सवाल नक्सल आंदोलन से जुड़े हुए थे, जिनमें आलोक मेहता ने तो साफ-साफ कहा कि जो लोग एनजीओ बनाकर इन्हें मोरल सपोर्ट दे रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई कब होगी?
एक सवाल था हिंदू आतंकवाद पर कि सरकार कितनी गंभीर है? जम्मू-कश्मीर, पाक अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत भारतीय भूमि से संबंधित पांच सवाल पूछे गए। भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए क्या योजना है? ऎसे चार सवाल थे। नए राज्य, अगले पीएम, जातिगत जनगणना, अनुसूचित जाति/जन जातियों को निजी क्षेत्र में आरक्षण, मंत्रियों का आचरण, सीबीआई का दुरूपयोग, मुलायम को मंत्री बनाने, आईपीएल और अन्य खेलों में भ्रष्टाचार और आप "प्रो अमेरिका" हैं? ओडीसा में अवैध खनन, केरल में केंद्र की योजनाएं लागू नहीं हो रहीं। पानी के मसले पर भी सवाल पूछे गए।
एक जापानी दैनिक के पत्रकार ने जो कहा, वह मुझे इस तरह समझ आया कि आज छह महीने बाद प्रधानमंत्री से बात करने का मौका आया है, बड़ी लेटलतीफी है। एक सवाल सुमित अवस्थी ने पूछा था कि आप गुरशरण कौर की मानते हैं या सोनिया गांधी की? इस बेहूदा सवाल पर हॉल में हंसी गूंजी, प्रधानमंत्री जी ने थोड़े से किफायती शब्दों में दोनों को अलग बता दिया।
सुमित के सवाल पर मुझे शर्म आई। इसलिए नहीं कि वह निजी और राजनीति से जुड़ा था। एक मशहूर मसखरा विषय है, इसलिए कि जिस देश पर आबादी का बोझ इस कदर बढ़ा हुआ कि देश के घुटनों का प्रत्यारोपण ना हुआ तो वह कभी भी जमीन पकड़ सकता है। जिस देश के समक्ष महंगाई ने असुरी शक्ति पा ली है और उसका कद बढ़ता ही जा रहा है। जिस देश में वैश्विक दबाव के कारण मुद्रास्फीति पर कोई नियंत्रण नहीं हो पा रहा है, उस देश के प्रधानमंत्री जब राष्ट्र के समक्ष अपनी जवाबदेही के लिए उपस्थित हों, तब इस तरह के मजाकिया सवाल हमारी पत्रकारिता के गिरे हुए स्तर की ओर इशारा करते हैं।
इस प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में किया गया था और इसमें कोई संदेह नहीं है कि गठबंधन सरकार चलाने का यह तीसरा प्रयोग आशंकाओं के विपरीत सफल रहा है। आज राष्ट्र के समक्ष भीतरी और बाहरी गंभीर चुनौतियां हैं। वैश्विक आर्थिक उठापटक के दौर में पूंजीवाद का पोषक कहे जाने वाले अमेरिका ने सार्वजनिक सेवाओं का अधिग्रहण आरंभ कर दिया है। जनता के लिए न्यूनतम सुविधाओं को सुनिश्चित किए जाने के प्रयास आरंभ किए हैं। आर्थिक विश्लेषक इन उपायों पर कार्ल मार्क्स के इस समय मुस्कुराते होने की बात कह रहे हैं, जबकि भारतीय विकास का मूल आधार भी यही कदम रहे हैं। आज देश की जनता पीने के पानी और रसोई गैस की प्राथमिकता को सुनिश्चित करना चाहती है। खाद्य वस्तुओं और दूध जैसी दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर वैश्विक संकट की भी मार है। इस प्रेस कांफ्रेंस में जो सवाल खुलकर आने चाहिए थे, उनका केंद्र बिंदु होना चाहिए था कि दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में वादों पर सरकार कितनी खरी उतरी है और आने वाले चार सालों को एक आम आदमी किस निगाह से देखे?
एक सवाल जो कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से संबंधित था, वह हमारे संपूर्ण विकास के रास्ते पर फिर से एक नजर दौड़ाने के लिए बाध्य करता है। सच है कि विकास की पहली सीढ़ी शिक्षा ही है। अल्पसंख्यकों के लिए इस जरूरी कदम को मैं अधिक महत्वपूर्ण मानता हूं कि बेरोजगारी और भुखमरी आतंकवाद जैसे समाज विरोधी कार्य में घी का काम करती हैं। अशिक्षित तबका गुंडई के रास्ते आतंकवाद की पनाह तक पहुंचता है। महानरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना के बाद मजदूरों का पलायन रुका है। इसी तर्ज पर सबको शिक्षा के अधिकार का कानून भी क्रांतिकारी साबित होगा।
मैं सिर्फ एक पत्रकार का आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिसने पहला सवाल पूछा था। उसकी आंचलिक प्रभाव वाली हिंदी भाषा मुझे स्तरीय लगी, क्योंकि उसने जानना चाहा कि प्रधानमंत्री महोदय ऐसा कब तक चलेगा कि महंगाई बढ़ती रहेगी और आम आदमी रोता रहेगा। आंग्ल भाषा में सवाल पूछने वाले क्षेत्रीय राज्यों से थे अथवा वे थे, जिनकी प्रतिबद्धता राष्ट्र से नहीं है, वरन उन अंतरराष्ट्रीय समाचार समूहों से है, जिनकी नजर में खबर सिर्फ भारत की विदेश नीति ही है। हेडलाइन में भूख की खबरें परोसना चार्मिंग नहीं है, वरन पाकिस्तान को सबक कैसे सिखाएंगे? चीन के सोये हुए ड्रेगन को कैसे भड़काएंगे? या फिर आप शाम को पिज्जा खाएंगे या फिर मक्के की रोटी से काम चलाएंगे? जैसी शीर्ष पंक्तियां कमाई का जरिया हैं।
प्रेस कांफ्रेंस के समापन की घोषणा होते ही विज्ञान भवन का हाल मछली बाजार बन गया। प्रबुद्ध पत्रकार इस तरह चिल्ला रहे थे कि उनके महत्वपूर्ण प्रश्न छूट गए हैं। गरिमा और शालीनता, चिंतन और मनन, परिश्रम और दृष्टि वाले पत्रकारों! अच्छा हुआ कि आप लोग इस प्रेस कांफ्रेंस से पहले अपने सद्कर्मों के बाद दुनिया से विदा ले चुके हैं, अन्यथा आज इस विकासशील देश के पत्रकारों की अपनी पीढ़ी को देखकर अफसोस के दो आंसू भी नहीं बहाते। मैं प्रधानमंत्री जी से कुछ पूछने का अधिकारी नहीं हूं, अगर होता तो एक नहीं तीन सवाल पूछता।

  • इस बार मानसून सामान्य से बेहतर रहने की उम्मीद है, तो क्या सरकार इस विषय पर सोच रही है कि किसानों को लगभग मुफ्त में बीज और खाद दिए जाएं, ताकि भूखे-नंगे आदमी को नक्सली खरीद ना पाएं?
  • मैं जानना चाहूंगा कि आधार पहचान पत्र (यूआईडी) बनाने की प्रक्रिया से जुड़े कार्मिकों द्वारा गलत व्यक्ति की पहचान सत्यापित करने पर कितनी सख्त सजा दी जाएगी? ताकि यह तय हो कि इस देश में स्वच्छंद कौन घूम रहा है।

  • आखिरी सवाल कि सरकारें इतनी दोगली क्यों हैं कि शराब को राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताती हैं, फिर भी प्रतिबंध नहीं लगातीं?
तीसरे सवाल का उत्तर मुझे पता है कि इससे सरकार और उत्पादक को असीमित मुनाफा होता है। सात रुपए की लागत वाली बीयर की बोतल अस्सी रुपए में बेची जाती है। सरकार और कंपनी का फिफ्टी-फिफ्टी। इसका एक उत्तर यह भी हो सकता है कि आओ पी के सो जाएं, महंगाई गई तेल लेने। सोने से पहले कमर जलालाबादी का एक शेर सुनिए-
"सुना था कि वो आएंगे अंजुमन में, सुना था कि उनसे मुलाकात होगी
हमें क्या पता था, हमें क्या खबर थी, न ये बात होगी न वो बात होगी।"

किशोर चौधरी का लिखा यह आलेख डेली न्‍यूज, जयपुर के संपादकीय पेज पर छपा है. वहीं से साभार लेकर इसे यहां प्रकाशित कराया गया है
पत्रकार व पत्रकारिता को समाज की आंख, नाक, व कान ही नहीं उसका मुख भी माना जाता है ! 2004 से वह मुख सरकारी संसाधनों को अधिग्रहित करने में सरकार की विशेष भागीदारी योजना से जुड़कर आंख, नाक, व कान का उपयोग समाज हित नहीं स्वहित साधने में व्यस्त है! ऐसे में समाज के दुःख दर्द, महंगाई व किसी भी समस्या पर पत्रकारिता गूंगी हो गई है तो इस से जुडे लोगों का क्या दोष ! पहले पेट देखें या दूसरों का दुःख दर्द! देश के स्थापित मीडिया व उसके सभी स्तरों पर बाजारवाद व यथार्थवाद के नाम पर ऐसे ही लोगों का प्रभुत्व है! किशोर चौधरी का यह कथन 'पूछने का अधिकारी नहीं हूं' और कैसे लोग इसके अधिकारी हैं क्योंकि लिखित शर्तों से अधिक अलिखित शर्तों को पूरा कर उन्होंने यह अधिकार पाया है!जिस हम जैसे लोग नहीं कर पाते!
 विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Friday, May 21, 2010

बहुमुखी प्रतिभा के धनी – भैरोंसिंह शेखावत

                  - विनोद बंसल


23 अक्टूबर 1923 को राजस्थान के सीकर जिले के खाचारियावास गांव में अध्यापक श्री देवी सिंह शेखावत के घर जन्मे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत बहुमुखी प्रतिभा व बहुआयामी व्यक्तित्व के घनी थे। श्री भैरो सिंह ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से सिर्फ राजस्थान ही नहीं, पूरे विश्व में नाम कमाया। राजनीति के शिखर पुरूष ने अपने 87 वर्षीय जीवन काल में न सिर्फ सर्वाधिक अवधि तक विधायक रहने का कीर्तिमान स्थापित किया बल्कि 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री, वर्षों तक प्रतिपक्ष के नेता, सांसद व उपराष्ट्रपति तक का कार्यकाल तय किया। सती प्रथा हो या जागीरदारी प्रथा, जाति-पाति हो या छुआ-छूत, सभी को नकार कर उन्होनें कई बार अपनों के ही विरोध का सामना किया। भारतीय भाषा, वेशभूषा, सात्विक खान-पान व उनके आतित्थ्य सत्कार में स्पष्ट रूप से राजस्थान की मांटी की सुगन्ध मंहकती थी। छोटा हो या बड़ा, अपना हो या पराया सभी के साथ समरसता के भाव ने उन्हें एक जमीनी नेता की ख्याति दी। वे ‘अन्त्योदय’ योजना के सूत्रधार तो थे ही, वे ‘काम के बदले अनाज’, ‘तीस जिले-तीस काम’ व ‘भागीरथी’ जैसी अनेक कल्याणकारी योजनाओं में गरीबों के मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
1942 में 19 वर्ष की अल्पायु में ही पिता के स्वर्गवासी होने पर बालक भैरो सिंह शेखावत के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारियां आ गयी थीं। उनके पिता सामाजिक समता के पक्षधर व रूढिवाद के विरोधी थे। जिसका स्पष्ट असर उनमें भी देखा गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें देश व समाज के लिए जीने का पाठ पढ़ाया। जनसंघ के स्थापना के बाद 1952 में हुए राजस्थान विधानसभा के पहले चुनावों में भैरों सिंह शेखावत सहित 50 लोगों को जनसंघ ने अपना उम्मीदवार बनाया। इनमें से 30 की जमानतें जब्त हो गयीं थी। किन्तु, ऐसे कठिन समय में भी, अपने राजनीति कैरियर के प्रथम चुनाव में भैरो सिंह शेखावत अपने दल के 8 विधायकों को लेकर विधानसभा में पहुंचे। यदि 1972 को छोड़ दें तो 1952 से लेकर 2002 तक अनवरत राज्य के विभिन्न हिस्सों से विधायक चुने जाने का गौरव प्राप्त था। वर्ष 1977, 1990 व 1993 में वे राज्य के मुख्यमंत्री रहे। अनेक वर्षों तक प्रतिपक्ष के नेता के रूप में राज्य विधान सभा में उन्होंने अनेक कीर्तमान स्थापित किये। 10 बार विधायक रहे श्री शेखावत ने राज्य के 6 विधान सभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। सत्र के दौरान वे पूरे समय विधान सभा में रहा करते थे।
अपने पहले विधायक काल में ही सबसे पहले उन्होंने जमींदारी प्रथा का विरोध कर अपने ही समर्थकों से लोहा लिया तथा सत्तासीन सरकार को इस प्रथा के उन्मूलन में भरपूर सहयोग दिया।  4 सितम्बर 1987 को उन्हीं के गृह जिले सीकर के दिवराला गांव में रूप कंवर नामक महिला सती हुई तो पूरे समुदाय के विरोध के बावजूद उन्होनें सती काण्ड के दोषियों को दंडित करने की मांग कर डाली। इतना ही नहीं, उन दिनों जब मुख्यमंत्री श्री हरदेव जोशी ने सती प्रथा के विरोध में कानून बनाया तो श्री शेखावत उसके समर्थन में खडे हो गये। इस पर राजपूत समाज का एक बड़ा तबका उनके खिलाफ खड़ा हो गया। उन्हे गद्दार तक कहा गया। किन्तु, निर्भीक होकर जनसभाओं में गये और अपने तर्कों से सभी को निरुत्तर कर दिया। वे भाव विव्हल होकर कहा करते थे कि ‘यदि पिता जी की मृत्यु के बाद हमारी माता सती हो गयी होतीं तो मैं मुख्यमंत्री नहीं बनता और भीख का कटोरा लेकर कहीं घूम रहा होता’। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि राजपूत समाज में सती होना प्रथा नहीं है। वे सदा ही सामाजिक समरसता के पक्षधर थे तथा छुआछूत व जात पात को एक बीमारी मानते थे। गरीबों व किसानों के कल्याण की अनेक योजनाएं उन्होंने क्रियान्वित कीं। ‘अन्त्योदय’ योजना के राजस्थान में सफल क्रियान्वयन से प्रभावित होकर यह योजना पूरे देश ने अपनाई। विश्व बैंक के तत्कालीन प्रमुख श्री रावर्ट मैकमारा ने तो भैरो सिंह को दूसरा राक फेयर की संज्ञा दी जिसने अमेरिका में शिक्षा, गरीबी उन्मूलन तथा समाज सेवा के क्षेत्र में विलक्षण कार्य किये।
आदम्य साहस के धनी थानेदार भैंरोसिंह शेखावत ने अपनी बुद्धि व कौशल का परिचय देते हुए शेखावटी के कुख्यात डाकू शैतान सिंह को पकड़कर मेडल हासिल किया था। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उन दिनों आज की तरह न तो कोई वायरलेस सेट थे न ही द्रुतगामी वाहन। श्री शेखावत एक अजात शत्रु थे। उन्होंने जहां कदम रखा सफलता हाथ लगी। विरोधी भी उनकी वाकपटुता व व्यवहार कुशलता के कायल थे। हर परिस्थिति में सहज रहना उनका स्वभाव था। वे राजनैतिक जोड़ तोड़ के महारथी थे। उनकी राजनैतिक प्रतिबध्दता शीशे की तरह साफ थी। अपने 50 वर्ष के राजनीतिक जीवन में शायद ही कोई ऐसा राजनैतिक दल होगा जहां उनके मित्र न हो। वे ‘भैंरो बाबा’ के नाम से प्रसिध्द थे। 83 वर्ष की आयु में भी उन्होंने पेरिस की एफिल टावर पर चढ़कर उदम्य इच्छा शक्ति का परिचय दिया। वे उम्र को कैरियर में बाधक नहीं मानते थे। अटल बिहारी बाजपेयी व लालकृष्ण आडवानी 1950 के दशक से ही अभिन्न मित्र थे तथा अक्सर साथ-साथ भोजन किया करते थे। वे सांस्कृतिक मूल्यों के संवाहक थे। बात 7 अप्रैल 2006 की है। एक बंगला लेखक सुनील गंगोपाध्याय को दिल्ली में एक संस्था द्वारा सरस्वती सम्मान से नवाजा जाना था। यह सम्मान उपराष्ट्रपति श्री भैरो सिंह शेखावत देने बाले थे। जब हमें इस बात की जानकारी मिली कि सुनील गंगोपाध्याय ने मां सरस्वती का अपमान किया है तो उसे सरस्वती सम्मान कैसा? हमने तुरन्त श्री भैरोसिंह को एक फैक्स द्वारा इसकी सूचना देते हुए निवेदन किया कि आप जैसे सांस्कृतिक मूल्यों के रक्षक द्वारा ऐसे व्यक्ति को पुरस्कृत करने से अनर्थ हो जायेगा। श्री भैरोंसिंह उस कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। ऐसे राष्ट्रपुरुष को हम सब की विनम्र श्रद्धान्जलि।
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Monday, May 17, 2010

युगदर्पण विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Tuesday, May 11, 2010

लाल दुर्ग की दीवारों में दरारें

अविश्वसनीय किन्तु शीतलतादायक गरमागरम सत्य

-अरविन्द कुमार सेन
समय: रात के 8 बजे। स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का माही-मांडवी छात्रावास का भोजनालय। छात्र खाना खा रहे हैं। आइसा, एसएफआई, डीएसयू, पीएसयू और एआईडीएसओ आदि वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य छात्र भोजनालय में पहुंचते हैं। हाथों में बैनर और तख्तियां लिए ये छात्र दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमलें को सही ठहराते हैं और ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ बोलते हैं। डीएसओ की प्रतिनिधी छात्रा ने मुश्किल से एक मिनट बोला होगा कि अचानक भोजनालय में उपस्थित सारे छात्र चिल्लाने लगते हैं। कोई चम्मच से प्लेट बजा रहा है तो कोई जग से टेबल बजा रहा है। माहौल तनावपूर्ण हो जाता है और वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य बाहर की ओर दौड़ते हैं।
      माही-मांडवी के छात्र भी उनके पीछे-पीछे ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर आ जाते हैं। कुछ छात्र छात्रावास के सूचना पट्ट से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़कर उन्हें गेट के पास जला देते हैं।
     छात्रावास के गेट के पास धीरे-धीरे भीड़ जमा होने लगती है। इस भीड़ में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं जो किसी भी छात्र संगठन से नहीं जुड़े हैं। बिना किसी पूर्व योजना के एकत्रित हुए ये छात्र माओवादी हमले की आलोचना करते हैं। अचानक अफवाह फैलती है कि छात्रावास के एक लड़के का भाई भी एस हमले में मारा गया है। भावावेश में सारे छात्र जोर-जोर से नारे लगाते हैं और थोड़ी देर बाद सामने स्थित कोयना छात्रावास की ओर चल देते हैं। आन्दोलनों से दूर रहने वाले विज्ञान संकाय के छात्र भी आज इस भीड़ में शामिल हैं।
     ‘शहीदों हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘चीन के दलालों शर्म करो’ के नारों की गूंज के बीच कोयना छात्रावास के सूचना पट्ट से भी वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं। इतने में छात्रावास से कुछ लड़कियां माचिस लेकर बाहर आती हैं और पोस्टरों को जला देती हैं। इसके बाद छात्र-छात्राओं की यह भीड़ बढती जाती है और एक-एक करके लोहित, चन्द्रभागा, गंगा, यमुना, ताप्ती, साबरमती समेत सभी छात्रावासों के सूचना पट्टों से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं।
     इसके बाद सारी भीड़ 24 गुणा 7 ढाबे पर एकत्रित होती है। छात्र-छात्राएं एक-एक करके बोलना शुरू करते हैं। चूंकि भीड़ में किसी संगठन विशेष का कोई छात्र नेता नहीं है इस कारण वक्ताओं के जो मन में आ रहा है, वही बोलते जा रहे हैं। एक लड़की कहती है- बस अब बहुत हो गया, अब और तानाशाही नहीं सहेंगे। क्या कर लेंगे आईसा और एसएफआई वाले जाकर विभाग में सर से शिकायत कर देंगे, ग्रेड कम करवा देंगे, एमफिल में एडमिशन नहीं होगा। कोई बात नहीं, डीयू में चले जाएंगे लेकिन यहां इन लोगो की दादागिरी नहीं सहेंगे।
     एक और छात्र गौरव कहता है कि जेएनयू की इस दिखावे की जिंदगी से जी भर गया है। अगर कम्यूनिस्टों के खिलाफ कुछ भी बोलो तो दक्षिणपंथी समझ लिया जाता है और परीक्षा में ग्रेड़ कम कर दिया जाता है। देशभर के मुद्दों के लिए लड़ने का दंभ भरने वाले ये लोग जेएनयू में क्या कर रहे हैं इस सामाजिक संवेदनशीलता के ढोंग से जी भर गया है। गौरव अपनी बुआ के लड़के को याद करते हैं जो हाल ही में हुए माओवादी हमले में मारा गया। गौरव की आंखे नम हो जाती हैं और भर्राई आंखों से यह कहकर अपनी बात खत्म करते है कि बेशक जेएनयू छोड़ना पड़े लेकिन अब इन लोंगो का साथ नहीं देंगे। यह सभा लगभग 11 बजे खत्म हो जाती है।
     समय 11:30 बजे और स्थान जेएनयू का थिंक टैंक सेंटर गंगा ढाबा। गंगा ढाबा आज ऐसी घटना का गवाह बना जो पिछले चार दशकों में कभी नहीं हुई। ऊंची आवाज में होने वाली बहसें और नोक-झोंक आज नहीं हो रही हैं। गंगा ढाबे की पत्थर की कुर्सियां, जहां महफिले जमती थी, आज खामोशी के आवरण में लिपटी हुई हैं। इस सन्नाटे में कुछ छात्र धीमे-धीमे बात कर रहे हैं। आज तो क्रान्ति हो गई, गजब हो गया, माही-मांडवी वालों ने कमाल कर दिया.. यही सब आवाजें रह-रहकर गंगा ढावे की फिजां में तैर रही हैं।
     क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र की छात्रा अनुष्का कहती हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों के खिलाफ छात्र लंबे समय से उबल रहे थे। नक्सली हमले ने छात्रों को अपना आक्रोश जाहिर करने का अवसर दे दिया। छात्र प्रोफेसरों से डरते थे लेकिन आज यह सीमा भी टूट गई और सब छात्र सड़क पर आ गए। अनुष्का के बगल में खड़े राजीव आगे की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों ने विरोध करने के लिए गलत समय का चुनाव किया। 77 जवानों की मौत के बाद माओवादी लोंगो की सहानुभूति खो चुके हैं। एक तो ये संगठन पहले से ही खराब दौर से गुजर रहे हैं और फिर इनके प्रदर्शन से एबीवीपी और एनएसयूआई को मुंह मांगी मुराद मिल गई।
     पिछले 10 सालों से परिसर की राजनीति देख रहे शोध छात्र विवेक कहते हैं कि आज का प्रदर्शन जेएनयू की छात्र राजनीति में नया अध्याय है। पहले एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता प्रदर्शन तो दूर परिसर में पोस्टर तक नहीं चिपका पाते थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज जो हुआ, उसकी तो सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
     वामपंथी खेमा इस घटना के बाद से स्तब्ध है। जिस दुर्ग को सबसे अभेद्य समझा जाता था, आज उसकी दीवारों पर चिपके पोस्टरों पर लिखा है कि कम्यूनिस्ट कोई भी परचा न लगाए। डीएसयू के एक कार्यकर्ता ने दबी जुबान में कहा कि हमने गलत समय पर नक्सलवाद के समर्थन में प्रदर्शन करके एबीवीपी और एनएसयूआई को हावी होने का मौका दे दिया।
     दक्षिण एशिया अध्ययन केन्द्र के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस घटना कि पृष्ठभूमि पिछले पांच साल से तैयार हो रही थी। पहले जेएनयू में बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों के प्रोफेसर और छात्र हावी थे। उस समय हिन्दी पट्टी और खासकर बीएचयू और डीयू के छात्रों का प्रवेश न के बराबर होता था। अब न केवल प्रोफेसर बल्कि डीयू और बीएचयू के छात्र भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं, जो पहले से ही भगवा रंग में रंगे होते हैं।
     खास बात यह है कि एबीवीपी और एनएसयूआई जैसी धुर विरोधी पार्टियां एक साथ मिलकर वामपंथी छात्र संगठनों से लड़ रही हैं। अपने सबसे कठिनतम दौर से गुजर रही वामपंथी पार्टियों के लिए यह एक और बुरी खबर है। बंगाल और केरल के बाद तीसरे मजबूत गढ जेएनयू की दीवारों में भी दरारें आ गई हैं। जिस परिसर में इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह तक को नहीं बोलने दिया गया था, आज उसी जगह कम्यूनिस्ट पार्टियां को पोस्टर तक नहीं लगाने दिया जा रहा है।
     प्रकाश करात और सीताराम येचुरी की कर्मस्थली जेएनयू में आज भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे गूंज रहे हैं। यह देश में वामपंथ की चूलें हिलने का एक और संकेत है।
   विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक

Tuesday, May 4, 2010

BJP calls for a new Kashmir lead by youth

Bharatiya Janata Party, Jammu & Kashmir Rajbagh, Srinagar, Kashmir
Press statement by Jenab Tarun Vijay, National Spokesperson, BJP.
04th May 2010. Srinagar
     On my first visit to Srinagar after assuming the office of National Spokesperson, BJP, I have found the people, the common Kashmiris peace loving, wanting to have a prosperous and harmonious future, specially the youth of the valley. I bring good wishes and prayers for happy times for them on behalf of my Party President Shri Nitin Gadkari and the entire cadre.
     Its time for a New Kashmir led by the youth to rise leading into the era of peace, prosperity and progress. The wise, brilliant, futuristic path is at a stone’s throw away spreading its arms that ensure liberalism and happiness. We must lend an ear and guide them for the future. Their anger should be channelized into employment avenues. Our Party President Shri Nitin Gadkari has given a special message of goodwill for the youth of Kashmir wishing them happiness and a peaceful time ahead that must make every Indian proud.
I would also like to salute the Kashmiri Mothers who painstakingly tried and succeeded to a great extent keeping away their children from terrorism and destructive activities. Their heart and soul witnessed mayhem upsetting the real spirit of a composite culture of Kashmiriyat and they have stood firmly for saner and civilized values. Let’s walk together. I invite the youth and the women power to join BJP and create progressive entrepreneurship in the region of science, technology and protection of the environment that can become an example for the rest of India.
     A Number of incidents have been noticed where the local Muslims have courageously stood with their Kashmiri Hindu brethren and helped. A large number of them want Hindus come back and also support those who have stayed back. It’s a welcome sign that must get the national attention and accelerate the creation of a situation where all Hindus feel safe to return. One example, amongst many I heard is of Fateh Kadal, where a Shri Rama Shaiv Ashram was rebuilt by the active help from local Muslim friends. I wish such examples are highlighted by media also.
     Nothing can surpass the humanitarian values of the Kashmiri society, a beacon light for the Indianness. We trust the best of the solutions to all issues can be found through the path of Insaniyat, not through bullets.
Office secy.
BJP J&K, Srinagar,04-05-2010
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है! पाक के सभी नापाक इरादों को असफल कर इस देश ने यह दिखा दिया है, "यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है!- तिलक

Tuesday, April 20, 2010

नानाजी देशमुख – व्यक्तित्व और कृतित्व – विनोद बंसल

प्रकाश  पुंज सा आदर्श जीवन, जीते जी समाज  की निष्काम सेवा और अंत में पार्थिव शरीर के अंग भी  समाज को अर्पित कर देने का अद्वितीय व्यक्तित्व !  यूं तो हमारा देश पुरातन काल से ही ॠषियों, मुनियों, मनीषियों, समाज सुधारकों व महापुरुषों का जनक रहा है जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर जगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। किंतु आधुनिक युग की बदलती हुई परिस्थितियों में ऐसे महापुरुष बिरले ही हैं। 11अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से ग्राम कडोली में जन्मे चंडिका दास अमृतराव देशमुख ने अपने बाल्यावस्था में शायद ही ऐसी कल्पना की होगी कि वह अपने जीवन काल में किये गये सेवा, संस्कार व शिक्षा के प्रसार के माध्यम से 50,000 से अधिक विद्यालयों की स्थापना, 500 से अधिक ग्रामों का विकास, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, दीनदयाल शोध संस्थान, राष्ट्र, धर्म, पांचजन्य व ‘दैनिक स्वदेश’ का संपादन/प्रबंधन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम पूरे विश्व में फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा पायेगा। भारत सरकार उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित कर राज्यसभा के लिए स्वतः मनोनीत करेगी यह तो सोचा ही कैसे जा सकता था।
अपने 94 वर्षों की लंबी निष्काम सेवा ने उनका असली नाम चंडिका दास अमृतराव देशमुख से नानाजी देशमुख रख दिया। निर्धनता के कारण सब्जी बेच किताबें जुटाकर पढ़ने वाले नानाजी देशमुख लोकमान्य तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हैडगेवार की राष्ट्र निष्ठा ने उन्हें संघ से जोड़ा। 1940 में उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया तथा आगरा से संघ प्रचारक के रूप में अपना समाज जीवन आरंभ किया। विषम आर्थिक परिस्थितियों व राजनैतिक विरोधों के बावजूद उन्होंने मात्र 3 वर्षों में गोरखपुर के आसपास 250 से अधिक संघ शाखाएं प्रारम्भ करवायीं। शिक्षा की दुर्दशा को देखते हुए 1950 में गोरखपुर में ही उन्होंने पहला सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय खुलवाया। संस्कारवान व राष्ट्रनिष्ठ नागरिक बनाने वाले ऐसे 50000 से अधिक विद्यालय आज देश के कोने- कोने में चल रहे हैं। ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’ व ‘दैनिक स्वदेश’ जैसे विख्यात प्रकाशन नानाजी के मार्गदर्शन की ही देन हैं।
1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद नानाजी को उत्तर प्रदेश का प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया जिन्होंने 1957 तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का अलख जगाया। उत्तर प्रदेश की 412 सदस्यों वाली विधानसभा में जनसंघ के 99 विधायक चुनवाकर काँग्रेस की चूलें हिला दीं थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के पश्चात् पंडित दीन दयाल उपाध्याय को जनसंघ का अखिल भारतीय महामंत्री तथा नानाजी को अखिल भारतीय संगठन मंत्री बनाया गया। जहां एक ओर श्री विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया तो वहीं दूसरी ओर श्री जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान पटना में अपने ऊपर लाठियां खाकर श्री जयप्रकाश नारायण को बचाया। आपातकाल में जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के उपरांत वे प्रथम सत्याग्रही बने और देश भर के कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करते रहे। 1977 में आपात काल समाप्ति पर देशभर की सरकारों में जनसंघ सहयोगी रहा तथा नानाजी को केंद्र में उद्योग मंत्री का प्रस्ताव भेजा जिसे नानाजी ने सविनय ठुकरा दिया। 60 वर्ष की आयु में राजनीति छोड़ उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद में ग्राम विकास में जुटकर वे महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के दर्शन को अमली जामा पहनाने वाले महामनीषी बने। प्रचार से दूर रहने वाले निष्काम कर्मयोगी द्वारा केवल गांवों की दशा सुधार का उन्हें अपने बलबूते पर खड़कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो कार्यक्रम प्रारंभ किये गये उन्होंने भारतीय जनमानस पर अमिट छाप छोड़ दी। 2005 में प्रारंभ किये गये चित्रकूट ग्रामोदय प्रकल्प ने चित्रकूट के आसपास 500 से अधिक ग्रामों को स्वाबलंबी बना दिया तथा देश को पहला ग्रामोदय विश्वविद्यालय प्रदान किया। वे ग्राम विकास के सच्चे पुरोधा थे। सफल ग्रामोत्थान के इन्ही प्रयोगों के लिए उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से विभूषित कर राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। दीनदयाल शोध संस्थान नानाजी की कल्पना का ही एक साकार रूप है।
लगभग एक शतक लंबी राष्ट्र को समर्पित आयु के अंतिम पड़ाव से पूर्व ही उन्होंने तय कर लिया था कि जब तक जीवित हैं तब तक स्वयं तथा मृत्यु के बाद उनकी देह राष्ट्र के काम आये। दिल्ली की दधीचि देहदान समिति को अपने देहदान संबंधी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नाना जी ने कहा था कि मैंने जीवन भर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में होने वाली दैनिक प्रार्थना में बोला है -’पतत्वेष कायो, नमस्ते-नमस्ते’ अर्थात् हे भारत माता मैं अपनी यह काया हंसते हंसते तेरे ऊपर अर्पण कर दूं। अतः मृत्योपरांत उन्होंने न सिर्फ अपना देह दान कर चिकित्सा-शास्त्र पढ़ने वाले युवकों के अध्यापन हेतु अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को समर्पित करने का संकल्प किया बल्कि दस हजार रुपये की अग्रिम राशि भी समिति को दी जिससे देश के किसी भी भाग से उनका शांत शरीर इस कार्य हेतु उचित स्थान पर लाया जा सके।
ऐसे राष्ट्र पुरुष व महामनीषी को हम सब का शत् शत् नमन् !
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक