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समाज के उच्च आदर्श, मान्यताएं, नैतिक मूल्य और परम्पराएँ कहीं लुप्त होती जा रही हैं। विश्व गुरु रहा वो भारत इंडिया के पीछे कहीं खो गया है। ढून्ढ कर लाने वाले को पुरुस्कार कुबेर का राज्य। (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Friday, April 1, 2016

उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!!

उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!! 

चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है, (इसी प्रकार के अन्य गीत, YDMS संस्कार कोष) 
कहाँ गए वो संस्कारी गीत ? स्वयं को पहचानो। जिस शिखर से तुम गिरे हो, उसका मार्ग जानो। क्षमताओं को जागृत कर, मार्ग प्रशस्त करो। जिससे विश्व का मार्ग दर्शन कर सको। विश्व बाट जोह रहा है। तिलक -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS 
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विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक 

Wednesday, March 23, 2016

प्रधानमंत्री ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को दी श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को दी श्रद्धांजलि 
तिलक 
23 मार्च 16  न दि 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को सर्वोच्च बलिदान उनके पर श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘मैं भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को उनके शहीदी दिवस के अवसर पर नमन करता हूं और पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाले उनके अदम्य साहस और देशभक्ति के लिए उन्हें नमन करता हूं।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘अपने युवाकाल में इन तीन बहादुर लोगों ने अपने जीवन त्याग दिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां आजादी की हवा में सांस ले सकें।’’ आज ही के दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को निर्धारित समय से कुछ घंटे पूर्व ही फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इन तीनों को लाहौर कांड मामले में मृत्यु दंड की घोषणा की गई थी। प्रधानमंत्री ने समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया को भी उनकी जयंती के अवसर पर स्मरण किया। उन्होंने लोहिया को ‘‘एक ऐसा विद्वान और मौलिक विचारक’ बताया, जिन्होंने दूसरे दलों के लोगों को भी प्रेरणा दी।'' 
मोदी ने लोहिया के उस पत्र की भी एक प्रति सार्वजनिक की, जो उन्होंने महात्मा गांधी को 30 अप्रैल, 1941 को बरेली सेंट्रल जेल से लिखा था। इस पत्र में लोहिया ने अलमोड़ा के हरि दत्त कंदपाल का परिचय गांधी से करवाया था। पत्र में उन्होंने कहा था कि कंदपाल अहिंसा में गहरा विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं और जेल से मुक्त होने के बाद उनसे (गांधी से) मिलना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का भी उनके सहस्र चंद्र दर्शन के विशेष अवसर पर अभिनंदन किया और उन्हें शुभकामनाएं दीं। मोदी ने कहा, ‘‘कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को, उनके सहस्र चंद्र दर्शन के विशेष अवसर पर, मेरी हार्दिक बधाई।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘पूज्य शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी ने अपना जीवन सेवा और आध्यात्मिकता के प्रति समर्पित कर दिया है। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीघायु होने की कामना करता हूं।'' 
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इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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Wednesday, January 27, 2016

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा।

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा। 
Image result for manohar lal khattar in hindiहोटल के खाने का ऐसा बिल जिसे पढकर, आपके भी आंखों से भावुक आंसू आयेंगे.!

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हरयाणा के एक होटेल में घटी सत्य घटना है ...!!
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रात का समय था, होटल की मेज रखा पर 
अपना खाना, एक समान्य वयस्क श्रमिक बैठा खा रहा था ..! तभी उसकी दृष्टी होटल के बाहर कडी ठण्ड में खडे छोटे से भाई बहन की जोडी पर गई ...!!
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जो दोनों बच्चों का दुखी चेहरा, 
खाने की थाली पर कातर दृष्टी से देखते बच्चे, यह बात उस व्यक्ति के ध्यान में क्षण भर में आ गयी ...!! 
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आँखों से संकेत करते दोनों बच्चों को अंदर बुलाया, बच्चे संकोच से डरते डरते ही अंदर आये,
उस समान्य श्रमिक ने दोनों बच्चों के लिए खाने की दो थाली मंगाई .....
नन्हे बच्चें, अपने नन्हे से हाथों में जो बैठ रहा था, वो फटाफट खा रहे थे ......
नन्हे बच्चों के पेट में भूख की आग बुझ रही थी ...
खाना खाने के पश्चात् उस आदमी ने बिल मंगवाया .....!!
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काउंटर पर से बिल आया, आँकड़ा देखकर वो व्यक्ति स्तब्ध, निशब्द रह गया ..!!
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जानते है, बिल कितना था ?
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उस बिल पर लिखा था "हमारे पास ऐसी कोई मशीन या फिर आँकडा नहीं, जिससे मानवता का मुल्य गिना जा सके, भगवान आपका भला करे "
...ये है मनोहर लाल जी का आज का मनोहारी हरियाणा। 
🏻 🏻मानवता को प्रणाम कहो कैसी रही 
जब देश का नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, 
उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान 
-युगदर्पण मीडिया समूह YDMS- तिलक संपादक 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
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Tuesday, January 19, 2016

महाराणा प्रताप 'वीरयोद्धा और स्वाभिमानी' नायक

महाराणा प्रताप 'वीरयोद्धा और स्वाभिमानी' नायक
स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्पवान वीर शासक एवं महान देशभक्त महाराणा प्रताप का नाम, इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है।  महाराणा प्रताप युग के महान व्यक्ति थे। ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् (9 मई )1540 को मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे ज्येष्ठ पुत्र, महाराणा प्रताप को बचपन से ही अच्छे संस्कार, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान और धर्म की रक्षा की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली।

 सादा जीवन और दयालु स्वभाव वाले महाराणा प्रताप की वीरता और स्वाभिमान तथा देशभक्ति की भावना से, अकबर भी बहुत प्रभावित हुआ था। जब मेवाङ की सत्ता राणा प्रताप ने संभाली, तब आधा मेवाड़ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये अकबर प्रयासरत था। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को चलाये रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया। जंगल-जंगल भटकते हुए भी, उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया, पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा कोष समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अतिरिक्त मुझे आपके कोष की एक पाई भी नहीं चाहिये। अकबर के अनुसार  महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुका नहीं, डरा नहीं।

महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में व्यतीत हुआ। अपनी पर्वतीय युद्ध नीति के द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार पराजय दी। यद्यपि जंगलों और पहाड़ों में रहते हुए महाराणा प्रताप को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा, किन्तु उन्होने अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा। महाराणा प्रताप के सुदृढ़ संकल्पों ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों को असफल बना दिया। उनके धैर्य और साहस का ही प्रतिफल था कि 30 वर्ष के निरंतर प्रयास के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा ‘चेतक‘ था, जिसने अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था।

 हल्दीघाटी के युद्ध में उन्हें भले ही पराजय का सामना करना पड़ा, किन्तु हल्दीघाटी के बाद अपनी शक्ति को संगठित करके शत्रु को पुनः चुनौती देना, प्रताप की युद्ध नीति का एक अंग था। महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति को पहचान कर उनके अचानक धावा बोलने की प्रक्रिया को समझा और उनकी छापामार युद्ध पद्धति से अनेक बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला था। महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतंत्रता का संघर्ष जीवनपर्यन्त जारी रखा। अपने शौर्य, उदारता तथा सदगुणों से जनसमुदाय में लोकप्रिय थे। महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होने अमरसिंह द्वारा पकड़ी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया था।

हल्दीघाटी के युद्ध में पराजय अपनी शक्ति और कौशल में कमी के कारण नहीं, अपितु राजा मानसिंह, भाई शक्ति सिंह का अहम और दुष्ट, ईर्ष्यालु भाई जगमाल की सत्तालोलुप महत्वाकांक्षा के कारण अकबर का साथ देने से हुई। 
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुणों के साथ-साथ अच्छे व्यवस्थापक की विशेषताएँ भी थी। अकबर की उच्च महत्वाकांक्षा, शासन निपुणता और असीम साधनों के बाद भी महाराणा प्रताप की अदम्य वीरता, साहस और उज्ज्वल कीर्ति को परास्त न कर सकी। अंतत: शिकार के समय लगी चोटों के कारण महारणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को चावंड में हुई।
राष्ट्रद्रोहियों को परास्त करना ही, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिससे हल्दी घाटी हमें फिर घाव न दे सके। भारत के शत्रुओं को दण्डित करने से हम सशक्त होंगे, वे क्षमा योग्य नहीं, न यह मानवता वाद। 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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Tuesday, January 12, 2016

ज्ञानपुंज, स्वामी विवेकनन्द जी,

ज्ञानपुंज, स्वामी विवेकनन्द जी, 
 व्यक्तित्व 
उठो जागो और तब तक आगे बढ़ते रहो, जब तक भारत पुन: विश्व गुरु के आसान पर आरूढ़ न हो  जाये। शिकागो विश्व धर्म संसद में, अपने दिव्य ओजस्वी भाषण से चकित कर परतंत्र भारत को विश्व में सम्मान दिलाने वाले, स्वामी विवेकनन्द जी, सरस्वती जिनकी जिह्वा पर विराजती थी।  जन्म 13 जनवरी, 1863, तथा कम आयु में ही चमत्कारिक ज्ञान से विश्व को प्रकाशमय कर देनेवाले (नरेंद्र ) स्वामीजी की वर्षगांठ पर हमारी कोटि कोटि शुभकामनायें व बधाई। आइये, इनका अनुसरण कर जीवन को तमस मुक्त, प्रकाशयुक्त करने का संकल्प लें।
युवाओं के शक्तिपुंज और आदर्श तथा प्रेरक संत स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के दत्त परिवार में 12 जनवरी 1863 ईसवीं को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त कई गुणों से विभूषित थे। वे अंग्रेजी एवं फारसी भाषाओं में दक्ष थे। बाइबल उनका रूचि का ग्रंथ था। स्वामी जी के पिता संगीतप्रेमी भी थे। अतः पिता विश्वनाथ की इच्छा थी कि उनका पुत्र नरेंद्रनाथ भी संगीत की शिक्षा ग्रहण करें। स्वामी विवेकानंद की माता बहुत ही गरिमायी व धार्मिक रीति-संस्कृति वाली महिला थीं। उन्हें गरिमा किसी राजवंश की जैसी थी। ऐसे सह्दय परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ और फिर उन्होंने सारे विश्व को हिलाकर रख दिया तथा भारत के लिए महिला और गरिमा से भरे एक नये युग का सूत्रपात किया।
यह बालक नरेंद्र नाथ बचपन में ही बहुत अधिक शरारती थे किन्तु इनमे अशुभ लक्षण नहीं दिखलायी पढ़ रहे थे। सत्यवादिता उनके जीवन का मेरूदंड थी। वे दिन में खेलों में मगन रहते थे और रात्रि में ध्यान लगाने लग गये थे। ध्यान के समय उन्हें अदृभुत दर्शन प्राप्त होने लग गये। समय के साथ उनमें और परिवर्तन दिखलायी पड़ने लगे। वे अब बौद्धिक कार्यों को प्राथमिकता देने लगे। पुस्तकों का गहन अध्ययन करने लग गये थे। सार्वजनिक भाषणों में भी उपस्थित रहने लगे तथा बाद में, उन भाषणों की समीक्षा करने लगे, वे जो भी सुनते थे उसे वे अपने मित्रों के बीच शब्दश: वैसा ही सुनाकर सबको आश्चर्यचकित कर देते थे। उनकी पढ़ने की गति भी बहुत तीव्र थी तथा वे जो भी पढ़ाई करते उन्हें अक्षरशः याद हो जाया करता था। पिता विश्वनाथ ने अपने पुत्र की विद्वता को अपनी ओर खींचने का प्रयास प्रारंभ किया। वे उसके साथ घंटों ऐसे विषयों पर चर्चा करते, जिनमें विचारों की गहराई, सूक्ष्मता और स्वस्थता होती।
बालक नरेंद्र ने ज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति कर ली थी। उन्होंने तत्कालीन एंट्रेस की कक्षा तक पढ़ाई के मध्य ही अंग्रेजी और बांग्ला साहित्य के सभी ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने सम्पूर्ण भारतीय इतिहास व हिंदू धर्म का भी गहन अध्ययन कर लिया था। कालेज की पढ़ाई के बीच सभी शिक्षक उनकी विद्वता को देखकर आश्चर्यचकित हो गये थे। अपने कालेज जीवन के प्रथम दो वर्षों में ही पाश्चात्य तर्कशास्त्र के सभी ग्रंथों का गहन अध्ययन कर लिया था। इन सबके बीच नरेंद्र का दूसरा पक्ष भी था। उनमें आमोद-प्रमोद करने की कला थी, वे सामाजिक वर्गों के प्राण थे। वे मधुर संगीतकार भी थे। सभी के साथ मधुर व्यवहार करते थे। उनके बिना कोई भी आयोजन पूरा नहीं होता था। उनके मन में सत्य को जानने की तीव्र आकांक्षा पनप रही थी। वे सभी सम्प्रदायों के नेताओं के पास गये किन्तु कोई भी उन्हें संतुष्ट नहीं कर सका।
1881 में नरेंद्र नाथ पहली बार रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आये। रामकृष्ण परमहंस मन में ही नरेंद्र को अपना मनोवांछित शिष्य मान चुके थे। प्रारंभ में वे परमहंस की ईश्वरवादी पुरुष के रूप में मानने को तैयार न थे। पर धीरे-धीरे विश्वास जमता गया। रामकृष्ण जी समझ गये थे कि नरेंद्र में एक विशुद्ध चित साधक की आत्मा निवास कर रही है। अतः उन्होंने उस युवक पर अपने प्रेम की वर्षा करके, उन्हें उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूति के पथ में परिचालित कर दिया। 1884 में बीए की परीक्षा के मध्य ही उनके परिवार पर संकट आया जिसमें उनके पिता का देहावसान हो गया। 1885 में ही रामकृष्ण को गले का कैंसर हुआ जिसके बाद रामकृष्ण ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी तथा उसके बाद ही उनका नाम स्वामी विवेकानंद हो गया। 1886 में स्वामी रामकृष्ण ने महासमाधि ली। वे स्वामी विवेकानंद को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर गये। 1888 के पहले भाग में स्वामी विवेकानंद मठ से बाहर निकले और तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। काशी में उन्होंने तैलंगस्वामी था भास्करानंद जी के दर्शन किये। वे सभी तीर्थों का भ्रमण करते हुए गोखरपुर पहुचें। यात्रा में उन्होंने अनुभव किया जनसामान्य में धर्म के प्रति अनुराग में कमी नहीं है। गोरखपुर में स्वामी जी को पवहारी बाबा का सान्निध्य प्राप्त हुआ। फिर वे सभी तीर्थो, नगरों आदि का भ्रमण करते हुए कन्याकुमारी पहुंचे। यहां श्री मंदिर के पास ध्यान लगाने के बाद उन्होंने भारतमाता के भावरूप में दर्शन हुए और उसी दिन सें उन्होंने भारतमाता के गौरव को स्थापित करने का निर्णय लिया। 
स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शिकागों में आयोजित धर्मसभा में हिेदुत्व की महानता को प्रतिस्थापित करके पूरे विश्व को चौंका दिया। उनके व्याख्यानों को सुनकर, पूरा अमेरिका ही उनकी प्रशंसा से मुखरित हो उठा। न्यूयार्क में उन्होंने ज्ञानयोग व राजयोग पर कई व्याख्यान दिये। उनसे प्रभावित होकर हजारों अमेरिकी उनके शिष्य बन गये। उनके लोकप्रिय शिष्यों में भगिनी निवेदिता का नाम भी शामिल है। स्वामी जी ने विदेशों में हिंदू धर्म की पताका फहराने के बाद भारत वापस लौटे। स्वामी विवेकानंद हमें अपनी आध्यात्मिक शक्ति के प्रति विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे राष्ट्र निर्माण से पहले मनुष्य निर्माण पर बल देते थे। अतः देश की वर्तमान राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए, देश के युवावर्ग को स्वामी विवेकानंद के विषय एवं उनके साहित्य का गहन अध्ययन करना चाहिये। युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अवश्य ही लाभान्वित होगी। 
स्वामी विवेकानंद युवाओं को वीर बनने की प्रेरणा देते थे। युवाओं को संदेश देते थे कि बल ही जीवन हैं और दुर्बलता मृत्यु। स्वामी जी ने अपना संदेश युवकों के लिए प्रदान किया है। युवावर्ग स्वामी जी के वचनों का अध्ययन कर उनकी उद्देश्य के प्रति निष्ठा, निर्भीकता एवं दीन-दुखियों के प्रति गहन प्रेम और चिंता से अत्यंत प्रभावित हुआ है। युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त अन्य कोई अच्छे मित्र, दार्शनिक एवं मार्गदर्शक नहीं हो सकता है। नवीन भारत के निर्माताओं में स्वामी विवेकानंद का स्थान सर्वोपरि हैं। ऐसे महानायक स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को अपने जीवन का त्याग किया।
13 जन, 2013 से 2014 जन्म शतार्द्ध (150 वीं ) वर्षगांठ संपन्न हुई। 
आप सभी को लोहड़ी तथा मकर संक्रांति पर्व की सपरिवार बहुत बहुत बधाई।
इतिहास को सही दृष्टी से परखें। गौरव जगाएं, भूलें सुधारें।
आइये, आप ओर हम मिलकर इस दिशा में आगे बढेंगे, देश बड़ेगा। तिलक YDMS
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है | जीने अथवा आगे बढ़ने का मार्ग मिलेगा, जब (भारत व इंडिया में अंतर) समझेंगे। 
मेरा भारत, मैं भारत का (Not India)
यह सम्बन्ध बनता है,  देश व समाज की जड़ों से जुड़कर।
क्या आप भी स्वयं को देश की जड़ों से जुड़ा पाते हैं ? तो आपका यहाँ स्वागत है !
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मेरा भारत, मैं भारत का (Not India)

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

नकारात्मक बिकाऊ मीडिया जनता को भ्रमित करे, तब जो 40 पृष्ठ में न मिल सके वो 4से 6 पृष्ठ में पायें 

नकारात्मक बिकाऊ मीडिया का सकारात्मक राष्ट्रवादी विकल्प युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. 
2001 से युगदर्पण समाचारपत्र द्वारा सार्थक पत्रकारिता और 2010 से हिंदी ब्लॉग जगत में विविध विषयों के 28 ब्लॉग के माध्यम व्यापक अभियान चला कर 3 वर्ष में 60 अब 70+ देशों में पहचान बनाई है। तथा काव्य और लेखन से पत्रकारिता में अपने सशक्त लेखन का विशेष स्थान बनाने वाले तिलक राज के 10 हजार पाठकों में लगभग 2000 अकेले अमरीका में हैं।  यदि आप भी मुझसे जुड़ना चाहते हैं, तो आपका हार्दिक स्वागत है, संपर्क करें औऱ अपने सम्पर्क सूत्र सहित बताएं कि आप किस प्रकार व किस स्तर पर कार्य करना चाहते हैं, तथा कितना समय देना चाहते हैं ? आपका आभार अग्रेषित है। -तिलक, संपादक युगदर्पण मीडिया समूह  09910774607, 07531949051 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक 
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Monday, January 11, 2016

स्व लाल बहादुर शास्त्री पुण्य तिथि

स्व लाल बहादुर 
शास्त्री 
जन्म 2 अक्टू 1904 वाराणसी, 
देहावसान 11 जन 1966 ताशकंद, उज्बेकिस्तान 
भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री, 
कृतज्ञ राष्ट्र आपको पुण्य तिथि पर (50 वर्ष) 
शत शत नमन व स्मरण करता है, 
युदमीस YDMS 2016, 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
 इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक

Tuesday, December 29, 2015

आई एस आई एस का भर्ती केंद्र -उल्टा प्रदेश

आई एस आई एस का भर्ती केंद्र -उल्टा प्रदेश
उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री मोहम्मद आजम खां मुस्लिम समुदाय का नेता बनने की आकांक्षा में नित्य प्रति जो वातावरण विषाक्त कर रहे हैं, उसके चलते विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य के वातावरण में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा मिल रहा है। आजम खां ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है। कानून के अनुसार सांप्रदायिक आधार पर एकजुटता की अभिव्यक्ति अपराध है। जिस व्यक्ति ने ''सबके साथ न्याय'' की संवैधानिक शपथ ली हो, उसके द्वारा ऐसी अभिव्यक्ति नितांत अनुचित व महाअपराध बन जाता है। उसे मंत्री रहने का कोई अधिकार नहीं है। उनके वक्तव्य की प्रतिक्रिया में ही हिन्दू महासभा के एक कथित नेता ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के बारे में ऐसी अभिव्यक्ति कर दी, जिससे सारा मुस्लिम समाज उत्तेजित हो उठा।
आजम खां ने राज्य सरकार के कई सौ करोड़ के बजट से मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम से एक ''विश्वविद्यालय'' स्थापित किया है, जिसके वे आजीवन चांसलर होंगे और उनकी पत्नी सचिव। जिन्हें इतिहास का ज्ञान है, वे यह जानते हैं कि अंग्रेजों ने 1902 में, बंगाल को दो भागों में बांटने का निर्णय कर दिया था। उसके विरुद्ध हिन्दू और मुसलमान एकजुट हो गए और अंग्रेजों को अपना निर्णय वापिस लेना पड़ा था। 1857 के बाद इस अभूतपूर्व एकजुटता से घबराए अंग्रेजो ने इस एकता को तोड़ने के लिए 1906 में ढाका के नवाब को मुखौटा बनाकर मुस्लिम लीग की स्थापना करवाई। जिसके पहले सम्मेलन में मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने ''ग्रीन चार्टर'' पेशकर मुस्लिम बहुल प्रदेशों की रचना का प्रस्ताव किया और प्रथम गोलमेज सम्मेलन के पूर्व इंगलैंड के गृह सचिव को पत्र लिखित चेतावनी दी कि यदि प्रदेशों की रचना नहीं हुई, तो खून की नदियां बह जाएगी। मौलाना तो चले गए किन्तु मुस्लिम बहुल आबादी का पाकिस्तान बनाने के लिए कितना रक्तपात हुआ है, उसके प्रत्यक्षदर्शी अभी भी जीवित हैं। मौलाना को महत्मा गांधी ने ''हिन्दू मुस्लिम एकता'' के लिए कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया था, जिन्होंने बाद में एक ''मुस्लिम गुण्डे'' को गांधी से बेहतर बताया था। अपनी वाचलता से घृणा का भँवर लाने वाले मौलाना मुस्लिम लीग में भी नहीं रहे। गोलमेज सम्मेलन में वे ''मुसलमानों'' का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग से पहुंचे थे, किन्तु सम्मेलन के पहले ही उनका निधन हो गया। भारत में दफनाया जाना उनको पसंद नहीं था, वे मक्का में दफनाया जाना चाहते थे, किन्तु वहां की सरकार ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। तब संभवतः उनको यमन में दफनाया गया। 
समय समय पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के लिए सिरदर्द बनने के बाद भी अखिलेश मंत्रिमंडल के सदस्य आजम खां के प्रेरक मौलाना जौहर ही हैं। वह समय समय पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुलायम सिंह को घुटने टेकने या अपमानित कर, यह प्रमाण देते रहते हैं कि मुख्यमंत्री कोई हो शासन उनका ही चलता है। अब तो उन्होंने दावा किया है कि वे प्रधानमंत्री बनेंगे और मुलायम सिंह यादव ही उनके नाम का प्रस्ताव करेंगे। 
अनेकानेक उत्तेजित करने वाली अभिव्यक्तियों के बीच, अभी उन्होंने यह कह डाला कि 2002 में गुजरात की जैसी स्थिति थी, वैसी इस समय सारे देश में पैदा हो गई है। ज्ञात हो कि गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी में सवार 69 कारसेवकों को जीवित जला देने की घटना के बाद वहां दंगा भड़का था, जिसमें कई सौ लोग मारे गए थे। तो क्या देश में ऐसा वातावरण है कि गोधरा दोहराया जायेगा और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भीषण दंगा होगा? पाकिस्तान प्रेरित अनेक संगठनों के लिए बारकुनों की भर्ती का सबसे उपयुक्त स्थान बना उत्तर प्रदेश इस समय इस्लामिक स्टेट संगठन के लिए भर्ती का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है। आजमगढ़ और सम्भल जनपदों में उनकी गतिविधियों के जो प्रयास प्रगट हुए हैं, उससे मुस्लिम समुदाय भी चिंतित है।

सामूहिक रूप से जब मुस्लिमों ने पेरिस में हुए हमले की भर्त्सना करते हुए इस्लाम की शांति का संदेश दिया तो आजम खां ने आईएस समर्थक होना पसंद किया। उन्होंने कहा कि ऐसा कांड किस बात की प्रतिक्रिया है, इस पर भी ध्यान देना चाहिए। आजम खां मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं हैं। समाजवादी पार्टी में ही जो मुसलमान हैं, वे उनको नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम हों या फिर बरेलवी पंथ के लोग, आजम खां से उनका छत्तीस का सम्बन्ध रहा है, आज भी है। शिया समुदाय के लोग तो उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। ऐसे वातावरण में मुस्लिम नेता बनने के लिए उन्होंने कटु अभिव्यक्तियों के माध्यम से उत्तेजना फैलाकर मुसलमानों का नेतृत्व संभालने का जो अभियान चलाया है, उसकी प्रतिक्रिया भी हुई है।
ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि स्पष्ट संकेत देने का साहस मुस्लिम समाज में है क्या ? 
इतिहास साक्षी है कि इस्लामिक कट्टर पंथ के समक्ष, हिन्दू समाज का चिंतन सदा मानवीय रहा है और परिस्थितिवश कभी आत्मरक्षा का भाव आवेश का कारण बना भी, तो उसे भी अनुचित न होते हुए भी, हिन्दुओं ने ही उसे सबसे पहले अनुचित ठहरा दिया। इस विरोध में सांप्रदायिक सद्भाव के नाम वे राष्ट्रद्रोह की सीमा तक चले गए। अब देखना यह है कि सांप्रदायिक सद्भाव और एकता के लिए भारत का मुसलमान आज़म खान का विरोध करता है या नहीं और किस सीमा तक जा कर। 
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इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक