पुंज सा आदर्श जीवन, जीते जी समाज की निष्काम सेवा और अंत में पार्थिव शरीर के अंग भी समाज को अर्पित कर देने का अद्वितीय व्यक्तित्व ! यूं तो हमारा देश पुरातन काल से ही ॠषियों, मुनियों, मनीषियों, समाज सुधारकों व महापुरुषों का जनक रहा है जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर जगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। किंतु आधुनिक युग की बदलती हुई परिस्थितियों में ऐसे महापुरुष बिरले ही हैं। 11अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से ग्राम कडोली में जन्मे चंडिका दास अमृतराव देशमुख ने अपने बाल्यावस्था में शायद ही ऐसी कल्पना की होगी कि वह अपने जीवन काल में किये गये सेवा, संस्कार व शिक्षा के प्रसार के माध्यम से 50,000 से अधिक विद्यालयों की स्थापना, 500 से अधिक ग्रामों का विकास, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, दीनदयाल शोध संस्थान, राष्ट्र, धर्म, पांचजन्य व ‘दैनिक स्वदेश’ का संपादन/प्रबंधन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम पूरे विश्व में फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा पायेगा। भारत सरकार उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित कर राज्यसभा के लिए स्वतः मनोनीत करेगी यह तो सोचा ही कैसे जा सकता था।
1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद नानाजी को उत्तर प्रदेश का प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया जिन्होंने 1957 तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का अलख जगाया। उत्तर प्रदेश की 412 सदस्यों वाली विधानसभा में जनसंघ के 99 विधायक चुनवाकर काँग्रेस की चूलें हिला दीं थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के पश्चात् पंडित दीन दयाल उपाध्याय को जनसंघ का अखिल भारतीय महामंत्री तथा नानाजी को अखिल भारतीय संगठन मंत्री बनाया गया। जहां एक ओर श्री विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया तो वहीं दूसरी ओर श्री जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान पटना में अपने ऊपर लाठियां खाकर श्री जयप्रकाश नारायण को बचाया। आपातकाल में जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के उपरांत वे प्रथम सत्याग्रही बने और देश भर के कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करते रहे। 1977 में आपात काल समाप्ति पर देशभर की सरकारों में जनसंघ सहयोगी रहा तथा नानाजी को केंद्र में उद्योग मंत्री का प्रस्ताव भेजा जिसे नानाजी ने सविनय ठुकरा दिया। 60 वर्ष की आयु में राजनीति छोड़ उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद में ग्राम विकास में जुटकर वे महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के दर्शन को अमली जामा पहनाने वाले महामनीषी बने। प्रचार से दूर रहने वाले निष्काम कर्मयोगी द्वारा केवल गांवों की दशा सुधार का उन्हें अपने बलबूते पर खड़कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो कार्यक्रम प्रारंभ किये गये उन्होंने भारतीय जनमानस पर अमिट छाप छोड़ दी। 2005 में प्रारंभ किये गये चित्रकूट ग्रामोदय प्रकल्प ने चित्रकूट के आसपास 500 से अधिक ग्रामों को स्वाबलंबी बना दिया तथा देश को पहला ग्रामोदय विश्वविद्यालय प्रदान किया। वे ग्राम विकास के सच्चे पुरोधा थे। सफल ग्रामोत्थान के इन्ही प्रयोगों के लिए उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से विभूषित कर राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। दीनदयाल शोध संस्थान नानाजी की कल्पना का ही एक साकार रूप है।ऐसे राष्ट्र पुरुष व महामनीषी को हम सब का शत् शत् नमन् !
























