लेख-- अजय देवगन और पाकिस्तानी कलाकार टकराये
वरिष्ठ लेखक पत्रकार, तिलक राज रेलन आज़ाद की कलम से
पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर प्रतिबंध के पक्ष में फिल्मी मुंबई से जुड़ा एक और अग्रणी व्यक्तित्व है। वर्तमान स्थिति में अभिनेता अजय देवगन ने पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करने से मना कर दिया है। इस माह के अंत में 47 वर्षीय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ और करण जौहर की ‘ऐ दिल है मुश्किल’ साथ-साथ प्रदर्शित होंगी। करण की फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की विशेष भूमिका है। देवगन को पाकिस्तान में अपनी फिल्म प्रदर्शन के बारे में चिंता नहीं है। वे मानते हैं ‘‘यह समय देश के साथ खड़े होने का है।’’ अजय इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट कहते हैं क्योंकि आप सबसे पहले भारतीय हैं। उनके कलाकार अपने देश के साथ खड़े हैं। वह यहां कमाते हैं किन्तु अपने देश का साथ देते हैं। हमें उनसे सीखना चाहिए।’’ अजय के साक्षात्कार के कुछ ही मिनट बाद उनकी पत्नी, अभिनेत्री काजोल ने ट्वीट कर अपने पति की प्रशंसा की। उन्होंने लिखा ‘‘गैर राजनीतिक और सही निर्णय लेने के लिए अपने पति पर मुझे अति गर्व है।’’ उरी प्रहार के दृष्टिगत भारत में कुछ वर्ग पाकिस्तान के कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।
करण जौहर की आने वाली फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ में कार्यरत भारत में लोकप्रिय पाकिस्तानी कलाकारों में से एक फवाद हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने फवाद और अन्य पाकिस्तानी कलाकारों माहिरा खान, अली जाफर और आतिफ असलम आदि पर लक्ष्य साधते हुए उन्हें 48 घंटे के अंदर देश छोड़ देने का समय देते हुए कहा था कि न जाने पर उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा। पार्टी ने ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ और माहिरा अभिनीत ‘‘रईस’’ का प्रदर्शन रोकने की धमकी भी दी थी। इसके बाद ‘‘इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन’’ (आईएमपीपीए) ने भारत पाक संबंधों के सामान्य होने तक सीमा पार के कलाकारों पर भारतीय फिल्मों में काम करने पर रोक लगाने संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया। फवाद की टिप्पणी से एक दिन पूर्व ही शफकत अमानत अली ने उरी कांड की निंदा की थी। इस मुद्दे पर बॉलीवुड में भिन्न भिन्न राय है। सलमान खान, करण जौहर, हंसल मेहता और अनुराग कश्यप ने जहां पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने जाने के विचार की आलोचना की है वहीं रणदीप हूडा, सोनाली बेन्द्रे और नाना पाटेकर ने इस विचार का समर्थन किया है।
ध्यान दें - 1) जब भी देश में हिन्दू मुस्लिम मामला बनता है तब कहा जाता है हम सब भारतवासी हैं। किन्तु अब कहो वो पाकिस्तानी हैं तब भारत के मुस्लिम अपने भारतीय होने के नाते उस बहिष्कार में भारत का साथ देने से कतराते क्यों हैं।
यहाँ 1965 का एक अनुकरणीय उदाहरण हैं पाकिस्तानी पैटन टैंक के सामने लेटने वाले सितम्बर १०, १९६५ के शहीद हवलदार (कै) अब्दुल हमीद का। मैं कई बार यह उदाहरण देता हूँ। अजेय माने जा रहे पैटन टैंक ने पाकिस्तान के अभिमान को दर्शाता याह्या खान का वाक्य, हमारी बहादुर फोजें रावलपिंडी से नाश्ता कर के चलेंगी (बिना रूकावट) दिल्ली में जा कर लंच दिल्ली में लेंगे। सितम्बर १०, १९६५ के दिन मदमस्त हाथी से बढ़ते पैटन टैंक के झुण्ड को देख कर वह वीर अब्दुल हमीद छाती से बम्ब (ग्रेनेड) बांधकर पैटन टैंक जिसकी अभेद्य मोटी पर्त को नहीं तो चेन तोड़ना ही सही, सोच उसके नीचे घुस गया। उस वीर ने यह नहीं सोचा मैं भी मुस्लमान वो भी मुस्लमान अपितु मैं भारत का सिपाही हूँ टैंक मेरे शत्रु देश का है। परमवीर चक्र से विभूषित कर उस शहीद को सम्मान से कैप्टन का मान दिया गया।
कै अब्दुल हमीद शहीद हो गए किन्तु टैंक आगे नहीं बढ़ सका। इसे देख अन्य अनुकरण कर कई वीर शहीद होकर टैंक के झुण्ड को वहीँ रोकने में सफल रहे। याह्या खान की तथाकथित बहादुर फोजें दिल्ली पहुँचने में असमर्थ रहीं।
सं 1947 तथा विशेषकर 1965 के पश्चात् भारत के मुसलमानों तथा लेखक पत्रकारों का आदर्श स्वतंत्रता पूर्व के मौ अबुल कलाम आज़ाद, क्यों नहीं ? किन्तु देश में व्यवस्था ने वोट बैंक का संरक्षण किया, देश भक्तों का सम्मान नहीं। देश की चिंता 1947 से नहीं, वर्ग या जाति विशेष की बात की जाती रही। आज ज़ाकिर नाईक हमारे नायक क्यों बनते जारहे हैं, वीर अब्दुल हमीद क्यों नहीं ? हमारी सोच भारतीय के नाते नहीं रही। इस पर चिंतन मनन की आवश्यकता है।
विश्वगुरु रहा वो भारत,
इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही,
विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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