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शारदीय नवरात्रि सभी नवरात्रों में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण नवरात्रि है। शारदीय नवरात्रि महा नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। यह शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु के मध्य सितंबर या अक्टूबर के महीने में चांद्र मास अश्विन में पड़ता है। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रि नाम शरद ऋतु से लिया गया है। नवरात्रि के मध्य सभी नौ दिन देवी शक्ति के नौ रूपों के लिए समर्पित रहते हैं। नौ दिन का यह उत्सव दसवें दिन दशहरा या विजया दशमी; असत्य पर सत्य की, दानवों पर देव की विजय पर रावण दहन के साथ समाप्त.होता है।
महिलायें, विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में, नवरात्रि के प्रत्येक दिन के लिए आवंटित (रंग) 9 विभिन्न रंगों के साथ स्वयं को सजाया करती हैं, जो प्रत्येक दिन एक ग्रह या नवग्रहों द्वारा शासित है और तदनुसार एक रंग प्रत्येक दिन को सौंपा जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा, उत्तर भारत में रामलीला, जागरण-कीर्तन और पश्चिम भारत में इस पर्व के मध्य गरबा-डांडिया की धूम रहती है।
शक्ति के रूप में दानवों का संहार करनेवाली शक्ति की युगों युगों से पूजा करने वाला यह समाज जिस मर्यादा का पालन करता है उसे व्यक्त करता है, यह गीत- हम न किसी का मुल्क चाहते हमें किसी से वैर नहीं; (साथ ही, हमारी यह भावना नपुंसकता का कारण नहीं हो, अगली पंक्ति उस पौरुष का प्रतीक है।) जो हम पर चढ़ कर आयेगा उस दुश्मन की खैर नहीं ।।
शारदीय नवरात्रि को शक्ति पूजा का पर्व कहा जाता है—इसके पीछे दो कथाएं मुख्य रूप से प्रचलित हैं। पहली है महिषासुर मर्दिनी से जुड़ी और दूसरी राम की शक्तिपूजा से। पहली कथा के अनुसार आदिशक्ति दुर्गा ने इन नौ दिनों में युद्ध करके देवताओं को महिषासुर नामक राक्षस के आतंक से मुक्त कराया था। महिषासुर नाम के राक्षस ने भगवान शिव की आराधना करके अपार शक्तियां प्राप्त कर ली थीं- उसने जल, थल और नभ पर विजय पा ली थी। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उसे हरा नहीं पा रहे थे। सभी देवताओं ने आदिशक्ति की आराधना की, सभी ने उन्हें अपनी-अपनी शक्तियां दीं। इसके बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और इस ब्रह्मांड को सभी कष्टों से मुक्त किया।
शारदीय नवरात्रि के महत्व के बारे में दूसरी कथा भगवान राम से जुड़ी है। त्रेता युग में राम और रावण के बीच भयानक युद्ध चल रहा था। प्राय: सभी बड़े योद्धा खोने के बाद रावण स्वयं मैदान में था। राम पूरी शक्ति लगा कर भी रावण को हरा नहीं पा रहे थे। रावण भगवान शिव का वरदान शिवभक्ति के अहंकार में डूबा था। रावण के युद्धकौशल से राम का मन भी विचलित होने लगा, वो चिंतित थे। तब श्रीराम को उनकी सेना के प्रमुख सेनापति जामवंत जी ने सुझाया—
कह हुए भानु-कुल-भूषण वहां मौन क्षण भर,
बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान, "रघुवर,
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर
जामवंत ने श्रीराम से कहा यदि रावण भगवान शिव की आराधना कर इतरा रहा है तो आप शक्ति की आराधना कीजिए. शिव के वरदान की काट शक्ति के अतिरिक्त किसी और के पास नहीं. और फिर भगवान राम ने 9 दिन तक आदिशक्ति दुर्गा की घनघोर आराधना की।
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