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Thursday, June 2, 2016

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ 

जल संकट से निबटने को जन भागीदारी बेहद जरूरीप्रधानमंत्री ने जल संकट के समाधान को लेकर कई प्रदेशों द्वारा अपने स्तर पर किये गये प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। इसके बाद भी तथ्य यह है कि वर्तमान में देश के एक दर्जन से राज्यों में सूखे की स्थिति हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात' के 20वें संस्करण में देश में व्याप्त जल संकट से निबटने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ऐसे में मूल प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री की मन की बात देश की जनता के मन को कितना प्रभावित करेगी। क्या प्रधानमंत्री की चिंता और अपील से प्रभावित होकर देशवासी जल दुरूपयोग से लेकर संचयन तक के उपायों को अपनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि करोड़ों−अरबों की योजनाओं और भारी भरकम मंत्रालयों एवं सरकारी मशीनरी के बाद भी देश में जल संकट ऐसा गंभीर रूप क्यों धारण कर रहा है। और समाज का बड़ा भाग पर्याप्त पानी से वंचित है। हम सबको सोचना होगा कि, क्या पानी हमारी आवश्यकता भर है, क्या हर जीव की इस आवश्यकता को पूरा करने के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं? कैसे मिलेगा पानी, जब हम उसे नहीं बचाएंगे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हमें शर्मिंदा होना चाहिए, क्योंकि भारत का भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। ये आने वाले भयावह समय का संकेत है, जब हम पानी की एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। 
बचपन से लेकर अभी तक हमें जल के महत्व के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, किन्तु इस पर हम कभी व्यवहार नहीं करते हैं। दैनिक जीवन में जाने−अनजाने में हम जल का अपव्यय खूब करते हैं। सवेरे उठते ही सबसे पहले हम शौच के लिए जाते हैं, उसके बाद हम ब्रश या दातून से अपने दांतों की सफाई करते हैं। फिर हम घर की सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, नहाते हैं, चाय पीते हैं, भोजन पकाते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं और सबसे मुख्य बात है कि पानी पीते हैं। देखा जाए तो हमारे दैनिक जीवन में पानी सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। भोजन या अन्य चीजों का विकल्प हो सकता है, किन्तु पानी का विकल्प अभी कुछ भी नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसे हम कभी भी नहीं खोना चाहते हैं। पृथ्वी पर जल की उपलब्धता इस समय प्राय: 73 % है, जिसमें मानवों के उपयोग करने योग्य जल मात्र 2.5 % है। 2.5 % पानी पर ही पूरा विश्व निर्भर है। देश के जितने भी बड़े बांध हैं, उनकी क्षमता 27 % से भी कम रह गई है। 91 जलाशयों का पानी का स्तर गत एक वर्ष में 30 % से भी नीचे पहुंच चुका है। 
स्वतंत्रता बाद से देश में लगभग सभी प्राकृतिक संसाधनों की निर्ममता से लूट हुई है। जल का तो कोई मुल्य हमारी दृष्टी में कभी रहा ही नहीं। हम यही सोचते आये हैं कि प्रकृति का यह अमुल्य कोष कभी कम नहीं होगा। हमारी इसी सोच ने पानी की बर्बादी को बढ़ाया है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने गंगा गोदावरी के देश में जल संकट खड़ा कर दिया है। यह किसी त्रासदी से कम है क्या कि महाराष्ट्र के लातूर में पानी के लिए खूनी संघर्ष को रोकने के लिए धारा 144 लागू है। कई राज्य भयानक सूखे की स्थिति में हैं। कुंए, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावड़ियों का अस्तित्व समाप्त प्राय है। भूजल का स्तर निम्नतम जा चुका है। जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल−कारखाने, उद्योगों और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया जिस कारण आज गिरता भूगर्भीय जल स्तर घोर चिंता का कारण बना हुआ है। अब लगने लगा है कि आगामी विश्व यु़द्ध पानी के लिए ही होगा। 
जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय झारखण्ड के सिमोन उरांव वर्तमान जल संकट को लेकर कहते हैं कि 'लोग धरती से पानी निकालना जानते हैं। उसे देना नहीं।' देखा जाए तो पहले सभी स्थानों पर तालाब, कुएं और बांध थे, जिसमें बरसात का पानी जमा होता था। अब धड़ल्ले से बोरिंग की जा रही है। जिससे वर्षा का पानी जमा नहीं हो पाता है। शहरों में तो जितनी भूमि बची थी लगभग सभी में अपार्टमेंट और घर बन रहे हैं। उनमें धरती का कलेजा चीरकर 800−1000 फुट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। वहां से पानी निकल रहा है, पर जा नहीं रहा तो ऐसे में जलसंकट नहीं होगा तो क्या होगा? विश्व में जल का संकट कोने−कोने व्याप्त है। आज हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। विश्व औद्योगीकरण की राह पर चल रहा है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा 29 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए मूल्यांकन में 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित पाई गईं। विश्व भर में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के चलते ही, जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। 
आंकड़ों के अनुसार अभी विश्व में प्राय: पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। यह सोचना ही होगा कि केवल पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रकृति प्रदत्त जल का संरक्षण करना है और एक−एक बूंद जल के महत्व को समझना होना होगा। हमें वर्षा जल के संरक्षण के लिए चेतना ही होगा। अंधाधुंध औद्योगीकरण और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से, स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है किन्तु पीने योग्य कितना यह सर्वविदित है! रेगिस्तानी क्षत्रों का भयावह चित्र चिंतनीय और दुखद है। पानी के लिए आज भी लोगों को मीलों पैदल जाना पड़ता है। आधुनिकता से रंगे इस काल में भी प्यास बुझाने हेतु जल जनित रोग हो जाएं और प्राण संकट पर भी गंदा पानी पीना बाध्यता है। 
प्रधानमंत्री ने जल संकट से उबरने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ये सच है कि बड़े से बड़ी सरकार या व्यवस्था बिना जन भागीदारी के अपने मंतव्यों और उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकती है। जहां देश के अनेक शहरों, कस्बों और गांवों में पानी का भारी संकट है, और स्थानीय नागरिक सरकार और सरकारी तंत्र आश्रित हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं वहीं कुछ ऐसे उदहारण भी हैं जहां स्थानीय लोगों ने अपने बल पर जल संकट से मुक्ति पाई है। बेंगलुरु की सरजापुर रोड पर स्थित आवासीय कॉलोनी 'रेनबो ड्राइव' के 250 घरों में पानी की आपूर्ति तक नहीं थी। आज यह कॉलोनी पानी के मामले में आत्मनिर्भर है और यहां से दूसरी कॉलोनियों में भी पानी आपूर्ति देने लगा है। यह संभव हुआ है पानी बचाने, संग्रह करने और पुनः उपयोगी बनाने से। वर्षा जल संग्रहण के लिए कॉलोनी के हर घर में पुनरुपयोग कुएं बनाए गए हैं। राजस्थान के लोगों ने मरी हुई एक या दो नहीं, बल्कि सात नदियों को फिर से जीवन देकर ये प्रमाणित कर दिया है कि मानव में यदि दृढ़ शक्ति हो तो कुछ भी संभव हो सकता है। जब राजस्थान के लोग, राजस्थान की सात नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं तो शेष नदियां साफ क्यों नहीं हो सकती हैं? पंजाब के होशियारपुर में बहती काली बीन नदी कभी अति प्रदूषित थी। किन्तु सिख धर्मगुरु बलबीर सिंह सीचेवाल की पहल ने उस नदी को स्वच्छ करवा दिया। 
देश में पानी की समस्या अपने चरम पर है। जल अपव्यय धड़ल्ले से हो रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि लोग इसके महत्त्व के बारे में जानते हुए भी निश्चिन्त बने हुए हैं और इसका अपव्यय कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा और समझाना होगा कि प्रकृति ने हमें कई अमुल्य उपहार सौंपे है उनमें से पानी भी एक है। इसलिए हमें इसे सहेज कर रखना है। पानी की कमी को वही लोग समझ सकते हैं, जो इसकी कमी से दो चार होते हैं। हम खाने के बिना दो−तीन दिन जीवित रह सकते हैं किन्तु जल बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव -सा लगता है। आय के साधन जुटाने में मनुष्य पानी का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है। हमें भविष्य की चिंता बिल्कुल नहीं है और न ही हम करना चाहते हैं। यदि विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य इसी प्रकार लगा रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ी प्रकृति के अमुल्य उपहार जल से वंचित रह सकती है। 
वर्षा के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने की पूर्ववर्ती सरकार की कोई योजना नहीं रही। ऐसे में समस्या तो होगी ही। वर्षा से पूर्व गांवों में छोटे−छोटे लघु बांध बनाकर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। शहर में जितने भी तालाब और बांध हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और अपार्टमेंट में जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी जलसंकट का सामना किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुआं रहेगा, तो उसमें वर्षा का पानी जायेगा। तब भूजल और वर्षा का पानी मेल खाएगा। आवश्यक नहीं है कि आप भगीरथ बन जाएं, किन्तु दैनिक जीवन में एक−एक बूंद बचाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। खुला हुआ नल बंद करें, अनावश्यक पानी बहाया न करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसे अपना अभ्यास बनायें। हमारा छोटा सा अभ्यास आने वाली पीढ़ियों को जल के रूप में जीवन दे सकता है। एक रपट के अनुसार, भारत 2025 तक भीषण जल संकट वाला देश बन जाएगा। हमारे पास मात्र आठ वर्षों का समय है, जब हम अपने प्रयासों से धरती की बंजर होती कोख को पुन: सींच सकते हैं। यदि हम जीना चाहते हैं, तो हमें ये करना ही होगा। 
मई में हमारे प्र मं ने विभिन्न राज्यों के मु मं से बैठकों द्वारा इस समस्या के समाधान के जो अपूर्व प्रभावी उपाय किये हैं, उसे जनसहभागिता का हमारा योगदान, भारत में 2025 तक भीषण जल संकट की उस सम्भावना का यह प्रबल प्रत्युत्तर होगा। हम बदलें, देश बनेगा; भविष्य बनेगा -वन्देमातरम। 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं |
देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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Thursday, April 14, 2016

श्री रामनवमी के कुछ दुर्लभ शुभ व्रत संयोग

श्री रामनवमी के कुछ दुर्लभ शुभ व्रत संयोग  
Image result for रामनवमी 2016कृ ध्यान दें सोशल मीडिया के सभी राष्ट्रवादी लेखकों के सूचनार्थ, पुष्य नक्षत्र के साथ-साथ बुधादित्य योग का दुर्लभ विशेष संयोग भी बन रहा है। इस शुभ दिन आइए एक दुर्लभ शुभ व्रत लें।     देवी महागौरी जयघोष से आठवां नवरात्र संपन्न हुआ, इस आठ   दिवसीय पर्व के नवरात्र व्रत की व्यस्तता से निकल कर, आइए    अब नकारात्मक तत्वों से रक्षा के सामाजिक संकल्प का व्रत लें। मित्रो, विगत में समाज पर शर्मनिरपेक्ष राष्ट्रद्रोह का काला साया जो रहा मँडराता, क्योंकि नकारात्मक भांड मीडिया ने उन्हें सर पे था बिठलता। समय आ गया है, अब उस कलंक को मिटाने का, 
राष्ट्रद्रोह से पूर्व उनके पोषक, नकारात्मक मीडिया के मिटाने का। 
इस शुभ अवसर पर विविध विषय के लेखकों का उनकी प्रतिभा के द्वारा, राष्ट्र सेवा सम्मान के से एकाकार होगा। 
राष्ट्रवाद की दैविक ऊर्जा एकजुट होकर चंडीका जब धरे स्वरूप, मिशन मीडिया, फिर परास्त हो मनी मीडिया। सभी संभावित प्रतिभागी, अपने प्रिय विषय सहित (राष्ट्र, समाज, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, पर्यावरण, ज्ञान विज्ञान, आदि) नमूना लेख पोस्ट करें -लेखक पत्रकार राष्ट्रीयमंच (राष्ट्रव्यापी राष्ट्रसमर्पित) संपा युगदर्पण LPRM 
https://www.facebook.com/groups/LekhakPatrakarRashtriyaManch/ 
YDMS के 30 ब्लॉग - राष्ट्र, समाज, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, पर्यावरण, ज्ञान विज्ञान, सत्य, शिक्षा, विश्व, युवा, काव्य साहित्य, कला, प्रतिभा, इतिहास, परिहास, नशा मुक्ति, फैशन मुक्ति, भूमि, चौपाल, महिला घर परिवार, विकास तथा विनाशक राजनीती, .... सभी विषयों पर समर्थ, .. यही है, व्यापक सार्थक विकल्प का अर्थ। 
नकारात्मक का प्रतिकार से पूर्व सकारात्मक अपनी स्वीकार्यता बनाएगा, तभी परिणाम पाएगा। 
यदि सहमत हैं, तो सहो मत,.....  उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!! 
नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, 
उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, ले कर करे; 
प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS - तिलक संपादक 
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कल रामनवमी है। अर्थात प्रभु श्री राम का जन्म। कुछ दुर्लभ संयोग

कल रामनवमी है। अर्थात प्रभु श्री राम का जन्म। कुछ दुर्लभ संयोग 
इस शुभ दिन आइए एक शुभ व्रत लें। देवी महागौरी जयघोष से आठवां नवरात्र संपन्न हुआ, आठ दिवसीय पर्व के नवरात्र व्रत की व्यस्तता से निकल कर, अब नकारात्मक तत्वों से रक्षा के सामाजिक संकल्प का व्रत लें। 

चैत्र नवरात्र के नौवें दिन, देश के कई भागों में रामनवमी पर भगवान श्रीराम जन्मोत्सव का त्योहार बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में तो श्रीरामनवमी का एक विशेष महत्व है। भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव तो वैसे ही अति शुभ समय होता है, किन्तु बार इस शुभ दिन कुछ और दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। यह विशेष योग जो शुभ तत्व को कई गुना वृद्धि प्रदान करने वाले हैं। 
रामनवमी इसबार 15 अप्रैल को है। इस बार रामनवमी पर उच्च का सूर्य, बुध के साथ मिलकर बुधादित्य योग बना रहा है। ये अति विशेष मुहूर्त है। साथ ही पुष्य नक्षत्र भी है। अर्थात पुष्य नक्षत्र के साथ-साथ बुधादित्य योग का विशेष संयोग भी बन रहा है। इतना विशेष योग भी कई वर्षों बाद बन रहा है। चैत्र और शारदीय नवरात्र के नौवें दिन नवमी को दोनों ही बार धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन पूजा-पाठ, दान-पुण्य का अधिक महत्व होता है। नवरात्र में कई लोग व्रतादि रखते हैं और विशेषकर चैत्र में रामनवमी के दिन श्रद्धालु पूजा-पाठ के उपरांत इसे तोड़ते हैं। 
रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है। इस दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन पूरे समय पवित्र मुहूर्त होता है। इस दिन नए घर, दुकान या प्रतिष्ठान में प्रवेश किया जा सकता है। किसी भी प्रकार का क्रय, गृहप्रवेश और शुभ कार्यों के लिए यह विशेष संयोग लाभकारी माना गया है। 
राम नवमी के दिन उपवास के पश्चात भक्तों को भगवान श्रीराम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और दान देना चाहिए। भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना करने से कृपा बनी रहेगी और घर में धन-समृद्धि की वृद्धि भी होगी। 
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Wednesday, April 13, 2016

मंदिर में महिला प्रवेश का हंगामा तथा सत्य -

विक्षिप्त क्यों? भारत, मोदी तथा हिंदुत्व के विरोधी 
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये।
अपनी धर्म संस्कृति को जीवन शैली का आधार बनायें, भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु बनायें। - तिलक
मंदिर में महिला प्रवेश का हंगामा तथा सत्य -
मंदिर में महिला प्रवेश के मामले पर जिस प्रकार एक भ्रामक प्रस्तुति की गई, लैंगिक भेदभाव का रूप देकर हंगामा कर धर्म समाज पर आरोप मढ़ते संघर्ष पूर्वक घुसने का नाटक तथा न्यायिक प्रक्रिया का पटाक्षेप हो गया है। मा. न्यायमूर्ति ने कहा लैंगिक भेदभाव का हिन्दू धर्म में कभी कहीं स्थान नहीं रहा।
सभी जानते हैं हमारे समाज में महिलाऐं धार्मिक कार्यों में सदा अग्रणी रही हैं। इतना ही नहीं देवी का स्थान तो हिन्दू समाज ने दिया, फिर मंदिर में महिला प्रवेश के विषय के भ्रम को समझें।
किन्ही विशेष स्थितियों में (मासिक स्त्राव में) मंदिर में महिला प्रवेश पर सामयिक रोक संभव है। वह भी स्व बाध्य पवित्रता हेतु। दूसरे शिवलिंग के रेडियोधर्मिता तरंगो से बचाव के लिए। यदि हिंदुत्व के शत्रु, हंगामा करने हेतु इसे लैंगिक भेदभाव का रूप देकर समाज में अशांति फैलाना चाहते हैं, तो हिन्दुओ उठो, जागो सत्य को जानो, धर्म विरोधी अधर्मियों को उनके कुचक्रों सहित पहचानो।
शिवलिंग, वर्षप्रतिपदा तथा अन्य सभी भारतीय मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार जानिए। रेडियोधर्मिता का किसी शिवलिंग, ज्योतिर्लिंग से सम्बन्ध जानिए। नालंदा तक्षशिला की शिक्षा जानिए।
तब समझमें आएगा, भारत वास्तव में विश्व गुरु था, हिंदू व उसमे विश्व गुरु के, वे तत्व विध्यमान होने से, क्यों बौखलाते हैं भारत के शत्रु ? तथा भारत में नई सत्ता से भारत के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया, क्यों उन्हें विक्षिप्त बना रही है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा तो कि शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधी, रेडियोधर्मिता का प्राकृतिक केंद्र व प्रतीक माना जाता है। इतना ही नहीं, सक्रिय रेडियोधर्मिता सभी ज्योतिर्लिंग की विशेषता है। अर्थात सम्पूर्ण वैज्ञानिक शक्तिपुंज की आराधना। यह प्रमाण है, युगों पूर्व भारत के वैज्ञानिक चरम का।
किन्तु शर्मनिरपेक्ष दलों व उनके दल्लों, शर्मनिरपेक्ष भांड मीडिया ने उसके प्रति नकारात्मक भाव भरना ही है।
उसी नकारात्मक शर्मनिरपेक्ष भांड मीडिया का सकारात्मक विकल्प, विविध विषयों के 30 ब्लॉग YDMS
www.yugdarpan.simplesite.com
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया;
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है।
रंगीन मीडिया की चमक के पीछे, कालिख जब दिखती न थी;
तब नकारात्मक का सकारात्मक विकल्प लिए युगदर्पण आया;
15 वर्ष में वो अंतर, जब देश भर की, प्रत्यक्ष समझ में है आया:
दूसरे चरण में नकारात्मक हटाओ, सकारात्मक अपनाओ। यु.द. - तिलक 

Friday, April 1, 2016

उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!!

उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!! 

चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है, (इसी प्रकार के अन्य गीत, YDMS संस्कार कोष) 
कहाँ गए वो संस्कारी गीत ? स्वयं को पहचानो। जिस शिखर से तुम गिरे हो, उसका मार्ग जानो। क्षमताओं को जागृत कर, मार्ग प्रशस्त करो। जिससे विश्व का मार्ग दर्शन कर सको। विश्व बाट जोह रहा है। तिलक -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS 
https://www.youtube.com/watch?v=yngFqZo5Db4&index=1&list=PL3G9LcooHZf3de3bFQ2LQ50y8x9Z6i7-v 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक 

Wednesday, March 23, 2016

प्रधानमंत्री ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को दी श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को दी श्रद्धांजलि 
तिलक 
23 मार्च 16  न दि 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को सर्वोच्च बलिदान उनके पर श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘मैं भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को उनके शहीदी दिवस के अवसर पर नमन करता हूं और पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाले उनके अदम्य साहस और देशभक्ति के लिए उन्हें नमन करता हूं।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘अपने युवाकाल में इन तीन बहादुर लोगों ने अपने जीवन त्याग दिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां आजादी की हवा में सांस ले सकें।’’ आज ही के दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को निर्धारित समय से कुछ घंटे पूर्व ही फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इन तीनों को लाहौर कांड मामले में मृत्यु दंड की घोषणा की गई थी। प्रधानमंत्री ने समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया को भी उनकी जयंती के अवसर पर स्मरण किया। उन्होंने लोहिया को ‘‘एक ऐसा विद्वान और मौलिक विचारक’ बताया, जिन्होंने दूसरे दलों के लोगों को भी प्रेरणा दी।'' 
मोदी ने लोहिया के उस पत्र की भी एक प्रति सार्वजनिक की, जो उन्होंने महात्मा गांधी को 30 अप्रैल, 1941 को बरेली सेंट्रल जेल से लिखा था। इस पत्र में लोहिया ने अलमोड़ा के हरि दत्त कंदपाल का परिचय गांधी से करवाया था। पत्र में उन्होंने कहा था कि कंदपाल अहिंसा में गहरा विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं और जेल से मुक्त होने के बाद उनसे (गांधी से) मिलना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का भी उनके सहस्र चंद्र दर्शन के विशेष अवसर पर अभिनंदन किया और उन्हें शुभकामनाएं दीं। मोदी ने कहा, ‘‘कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को, उनके सहस्र चंद्र दर्शन के विशेष अवसर पर, मेरी हार्दिक बधाई।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘पूज्य शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी ने अपना जीवन सेवा और आध्यात्मिकता के प्रति समर्पित कर दिया है। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीघायु होने की कामना करता हूं।'' 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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Wednesday, January 27, 2016

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा।

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा। 
Image result for manohar lal khattar in hindiहोटल के खाने का ऐसा बिल जिसे पढकर, आपके भी आंखों से भावुक आंसू आयेंगे.!

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हरयाणा के एक होटेल में घटी सत्य घटना है ...!!
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रात का समय था, होटल की मेज रखा पर 
अपना खाना, एक समान्य वयस्क श्रमिक बैठा खा रहा था ..! तभी उसकी दृष्टी होटल के बाहर कडी ठण्ड में खडे छोटे से भाई बहन की जोडी पर गई ...!!
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जो दोनों बच्चों का दुखी चेहरा, 
खाने की थाली पर कातर दृष्टी से देखते बच्चे, यह बात उस व्यक्ति के ध्यान में क्षण भर में आ गयी ...!! 
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आँखों से संकेत करते दोनों बच्चों को अंदर बुलाया, बच्चे संकोच से डरते डरते ही अंदर आये,
उस समान्य श्रमिक ने दोनों बच्चों के लिए खाने की दो थाली मंगाई .....
नन्हे बच्चें, अपने नन्हे से हाथों में जो बैठ रहा था, वो फटाफट खा रहे थे ......
नन्हे बच्चों के पेट में भूख की आग बुझ रही थी ...
खाना खाने के पश्चात् उस आदमी ने बिल मंगवाया .....!!
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काउंटर पर से बिल आया, आँकड़ा देखकर वो व्यक्ति स्तब्ध, निशब्द रह गया ..!!
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जानते है, बिल कितना था ?
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उस बिल पर लिखा था "हमारे पास ऐसी कोई मशीन या फिर आँकडा नहीं, जिससे मानवता का मुल्य गिना जा सके, भगवान आपका भला करे "
...ये है मनोहर लाल जी का आज का मनोहारी हरियाणा। 
🏻 🏻मानवता को प्रणाम कहो कैसी रही 
जब देश का नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, 
उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान 
-युगदर्पण मीडिया समूह YDMS- तिलक संपादक 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
 इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
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