उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री मोहम्मद आजम खां मुस्लिम समुदाय का नेता बनने की आकांक्षा में नित्य प्रति जो वातावरण विषाक्त कर रहे हैं, उसके चलते विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य के वातावरण में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा मिल रहा है। आजम खां ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है। कानून के अनुसार सांप्रदायिक आधार पर एकजुटता की अभिव्यक्ति अपराध है। जिस व्यक्ति ने ''सबके साथ न्याय'' की संवैधानिक शपथ ली हो, उसके द्वारा ऐसी अभिव्यक्ति नितांत अनुचित व महाअपराध बन जाता है। उसे मंत्री रहने का कोई अधिकार नहीं है। उनके वक्तव्य की प्रतिक्रिया में ही हिन्दू महासभा के एक कथित नेता ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के बारे में ऐसी अभिव्यक्ति कर दी, जिससे सारा मुस्लिम समाज उत्तेजित हो उठा।
अनेकानेक उत्तेजित करने वाली अभिव्यक्तियों के बीच, अभी उन्होंने यह कह डाला कि 2002 में गुजरात की जैसी स्थिति थी, वैसी इस समय सारे देश में पैदा हो गई है। ज्ञात हो कि गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी में सवार 69 कारसेवकों को जीवित जला देने की घटना के बाद वहां दंगा भड़का था, जिसमें कई सौ लोग मारे गए थे। तो क्या देश में ऐसा वातावरण है कि गोधरा दोहराया जायेगा और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भीषण दंगा होगा? पाकिस्तान प्रेरित अनेक संगठनों के लिए बारकुनों की भर्ती का सबसे उपयुक्त स्थान बना उत्तर प्रदेश इस समय इस्लामिक स्टेट संगठन के लिए भर्ती का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है। आजमगढ़ और सम्भल जनपदों में उनकी गतिविधियों के जो प्रयास प्रगट हुए हैं, उससे मुस्लिम समुदाय भी चिंतित है।
ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि स्पष्ट संकेत देने का साहस मुस्लिम समाज में है क्या ?
इतिहास साक्षी है कि इस्लामिक कट्टर पंथ के समक्ष, हिन्दू समाज का चिंतन सदा मानवीय रहा है और परिस्थितिवश कभी आत्मरक्षा का भाव आवेश का कारण बना भी, तो उसे भी अनुचित न होते हुए भी, हिन्दुओं ने ही उसे सबसे पहले अनुचित ठहरा दिया। इस विरोध में सांप्रदायिक सद्भाव के नाम वे राष्ट्रद्रोह की सीमा तक चले गए। अब देखना यह है कि सांप्रदायिक सद्भाव और एकता के लिए भारत का मुसलमान आज़म खान का विरोध करता है या नहीं और किस सीमा तक जा कर।
इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक