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श्री राम सेतु:
हाल ही में केंद्रीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसने रामसेतु के मुद्दे पर गठित यह आर.के. पचौरी समिति की रिपोर्ट को सेतु समुद्रम परियोजना को गंभीर तथ्यों के आधार पर लेने के विचार को निरस्त कर दिया है। आर.के. पचौरी समिति की रिपोर्ट ने सेतु समुद्रम को न केवल आर्थिक और पारिस्थितिक
अलाभकारी परियोजना करार दिया था और यहां तक कि श्री रामसेतु के इतर एक अन्य वैकल्पिक मार्ग का सुझाव दिया है। इस समिति के इतर,
कई विशेषज्ञों ने रामसेतु विध्वंस के साथ भारत के समुद्र में उपलब्ध कई मूल्यवान प्राकृतिक संपदा के नष्ट होने की शंका व्यक्त की व इसके कारण सूनामी का भी बढ़ सकता है, किन्तु इन सभी सुझावों की अनदेखी करके सरकार सेतु गिराने पर तुली हुई है।
इस के अतिरिक्त, रामसेतु न केवल भारतीय संस्कृति और धर्म का अपितु भारत के अस्तित्व का भी एक अभिन्न अंग है। प्राचीन शास्त्रों में भारत के आकार को 'आसेतु - हिमाचल' कहा जाता है जिसका अर्थ है कि यह देश इस सेतु से हिमाचल तक फैला है।
यदि सेतु वहाँ नहीं है तो भारत की पहचान का एक प्रतीक खो जाएगा।
यूपीए सरकार भारतीय संस्कृति के कई प्रतीकों/मानदंडों को नष्ट करने में लगी हुई है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और हास्यास्पद है कि 5 वर्ष पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र में कहा था कि राम ऐतिहासिक नहीं है। हालांकि यह जनाक्रोश का सामना करने पर वापस लिया गया था। इस तरह के अनावश्यक प्रश्न श्री राम जनम भूमि के संबंध में भी उठाये जाते रहे है।
विडंबना यह है कि रावण के देश यानी श्रीलंका की सरकार आधिकारिक तौर पर भगवान राम को ऐतिहासिक मानती है और उनसे संबंधित स्थानों की सुरक्षा/संरक्षित करती है और अपनी राम के देश की सरकार की सोच यह है। जब भारत प्रत्यक्ष विदेशी शासन के अधीन था, श्री राम और रामसेतु पर हमले का इस तरह प्रयास, नहीं किया गया था। जो बात
'अंग्रेज़ और औरंगजेब' करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, संप्रग सरकार करने पर तुली है।
यह सरकार का तर्क है कि 800 करोड़ खर्च किया जाने के बाद सेतु समुद्रम परियोजना को आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा लगता है कि इस सरकार ने पैसे के लिए अपनी ईमानदारी और गरिमा को कम किया है। और अब पैसे केलिए भगवान राम तक को बेच देने का प्रयास कर रही है।
सभ्यताओं की महिमा का प्रतीक पैसे के लिए नहीं बदलते हैं।
भाजपा का यह स्पष्ट मत है कि यदि वह सत्ता में आती है, यह पचौरी समिति की सिफारिशों को स्वीकार करेंगे। चाहे सेतु समुद्रम परियोजना के लिए एक वैकल्पिक मार्ग लिया जा सकता है या इस परियोजना को खत्म कर दिया जाना होगा हम किसी भी कीमत पर श्री रामसेतु का विध्वंस नहीं किया जाएगा क्योंकि यह
करोड़ों हिंदुओं की आस्था से संबंधित एक मुद्दा है। श्री रामसेतु एक राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने और इसे पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व विरासत घोषित करने के लिए प्रयास करेंगे।
हिंदुत्व और अल्पसंख्यक:
हिंदुत्व:
हिंदुत्व एक मुद्दा है जिसके लिए भाजपा को अपने विरोधीयों द्वारा लक्षित किया जाता है।:
हिंदुत्व क्या है एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं। अगस्त 2009 में प्रसिद्ध लेखक लिसा मिलर के एक लेख 'हम सब हिंदू हो रहे हैं' प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका न्यूज वीक में लिखा था। यह इस लेख में लिखा गया है कि करोड़ों अमेरिकी लोग शाकाहारी भोजन, योग, ध्यान, हर्बल दवा की दिशा में तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। और इतना ही नहीं इस लेख के अनुसार भगवान को पाने के, पूजा के एक से अधिक ढंग, विचार और मार्ग के प्रति आकर्षण, और पुनर्जन्म की स्वीकार्यता भी अमेरिका में बढ़ रही है। तो अनजाने में अमेरिका के लोगों में हिंदू मूल्यों के प्रति रुझान बढ़ रहे हैं। लेख से स्पष्ट है कि हिंदुत्व एक संप्रदाय नहीं है, यह जीवन की एक शैली है, जो किसी भी व्यक्ति जीवन के विभिन्न आयामों को प्रभावित करती है। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंदुत्व न एक धर्म और न ही एक संप्रदाय है, अपितु एक जीवन शैली है।
दोस्तों, यह एक जीवन -शैली है, जिसमे न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए शांति और अहिंसा का संदेश दिया गया है। यह जिसने विश्व को बुद्ध और गांधी दिया है। यह जीवन की शैली है कि जिसमे अकेले धर्म या मानव तो क्या, जीवित और निर्जीव प्राणियों में भी समान रूप से देवत्व देखते है। एकात्म मानववाद के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित भी, जो हमारी राजनीतिक विचारधारा है, भारतीय संस्कृति के इन शाश्वत मूल्यों का समकालीन स्पष्टीकरण देती है।
हिंदुत्व और अल्पसंख्यक:
दोस्तों, हिंदुत्व यह जीवन की शैली है कि जिसके कारण
विश्व में सभी धर्मो का अस्तित्व है। भारत विश्व में एकमात्र देश है जहां न केवल सभी धर्मों अपितु उनके सभी संप्रदायों के लोग पाए जाते हैं। मेरी जानकारी के अनुसार इस्लाम में 72 फिरके हैं। यहां 72 फिरके के अनुयायियों के लोग हैं। ईसाइयों के बीच न केवल रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, सातवें दिन धर्मान्तरण अपितु पूर्वी रूढ़िवादी और सीरियाई चर्च भी भारत में पाए जाते हैं। यदि पूरे
विश्व में कोई जगह है जहां यहूदियों तो नहीं सताया गया यह भारत है। पारसी आज भारत में ही पाए जाते हैं। इसलिए भारत के इस मिश्रित समाज का आधार हिंदुत्व है और हम हमारी इसी विचारधारा से प्रेरणा ले कर आगे बदें।
भारतीय जनता पार्टी ने समाज में धर्म और जाति के आधार पर कभी सौतेला व्यवहार नहीं किया है। इस धारणा से प्रेरित होने के नाते पार्टी के एक कार्यकर्त्ता के रूप में मैंने सदा मेरे मन में यह भाव रखा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, जब मैंने मुख्यमंत्री निवास में समाज के विभिन्न वर्गों की पंचायतों का आयोजन किया तो मैंने अरबी और फारसी मदरसों की पंचायतों का भी आयोजन किया।
विश्व के ज्ञात इतिहास में एकमात्र देश है और यह जीवन की शैली है कि जिसके कारण भारत ने अन्य देशों पर जीत कर भारत में शामिल करने या केवल उन्हें दास बनाने की चाह में कभी आक्रमण नहीं किया। यह जीवन की शैली है जो किसी एक व्यक्ति को
विश्व के देशों को जीतने के लिए प्रेरित नहीं करती है, अपितु लोगों के दिल को जीतने के लिए प्रेरित नहीं करती है। हिंदुत्व के संबंध में भाजपा की धारणा स्पष्ट है जो कि हमारे सम्माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने 1950 में एक युवा नेता के रूप में व्यक्त किया था।
"हो कर स्वतन्त्र मैने कब चाहा, मैं कर लूँ जग को गुलाम,
मैने तो सदा सिखाया है, करना अपने मन को गुलाम,
भू - भाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय,
हिंदू तन -मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय। "
भारत के भविष्य के लिए केवल भाजपा क्यों ?:
दोस्तों, भारत युवाओं का एक देश है और 21 वीं सदी में हर युवा भारत को एक महान देश के रूप में देखना चाहता है। कांग्रेस का गठन आजादी के पहले 19 वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा किया गया था और कांग्रेस ने 20 वीं सदी में अपने को चरम पर देखा, किन्तु भाजपा का यह गठन 20 वीं सदी में आजादी के बाद किया गया था और जब भारत ने 21 वीं सदी में प्रवेश किया अटल जी के नेतृत्व में भारत का नेतृत्व भाजपा के हाथ में था।
दोस्तों, 20 वीं सदी कांग्रेस की थी और 21 वीं सदी भाजपा की होगी।
हम सभी जानते हैं कि आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो इसने पराधीनता की सभी व्यवस्था को बनाये रखा है। भारत को कभी भी गुलाम मानसिकता से बाहर नहीं आने दिया है। हम हमारे राजनीतिक और आर्थिक दर्शन में कभी रूस और अन्य समय कभी अमेरिका की नकल करते रहे। अंग्रेजों की हम पर थोपी इस दास मानसिकता के कारण हमने अपनी पारंपरिक ज्ञान और विज्ञान की अनदेखी करना जारी रखा। आज विश्व भर में यह कहा जा रहा है कि भारत में विश्व की 'बौद्धिक पूंजी केंद्र' बनने की क्षमता है।परन्तु क्षमता के इस वास्तविक स्त्रोत को समझने की क्षमता केवल भाजपा में है।
मैं यह सब कुछ राजनीतिक पूर्वाग्रह के कारण नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर कह रहा हूँ। आप सभी के हाथ में अपने मोबाइल फोन है और हम संचार क्रांति के युग में रह रहे हैं। यह सच है कि यह सब भारत ने पश्चिम से सीखा है। हमने यह सीखने के बाद विशेषज्ञता प्राप्त किया है, किन्तु विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने विश्व को क्या दिया है? हम विश्व के लिए एक नई तकनीक देने में सक्षम है ? मुझे विश्वास है कि हम पूरी तरह से ऐसा करने में सक्षम हैं। किन्तु आजादी के बाद भी एक लंबे समय तक सत्ता में होने के बाद मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान की दिशा में कांग्रेस ने कभी ध्यान नहीं दिया। और वास्तविकता यह है कि जो एक मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करता है,
विश्व का नेतृत्व करता है। आज विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका, जो परमाणु बम की खोज करने के बाद एक महाशक्ति बन गया है।
भारत में भी कुछ इस तरह का करने की क्षमता है। दोस्तों, मैं भौतिकी का एक छात्र रहा हूँ तो मैं मौलिक भौतिकी में किये गये प्रयोग की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।
हम सभी जानते हैं कि मोबाइल से इंटरनेट और टीवी सभी डिजिटल सिग्नलों के आधार पर कार्य करते हैं। यह डिजिटल संकेत बनाना तब संभव हो गया, जब सौ साल पहले क्वांटम मैकेनिक्स की खोज की थी । क्वांटम मैकेनिक्स का उदगम जिस वर्नर हाइजेनबर्ग द्वारा प्रतिपादित 'अनिश्चितता के सिद्धांत' के माध्यम से हो पाया गया था, यदि हाइजेनबर्ग अनिश्चितता के सिद्धांत को प्रतिपादित नहीं करता, तब यह क्वांटम मैकेनिक्स नहीं आता जिससे वर्तमान संचार क्रांति आई, नहीं आ सकता था।
हाइजेनबर्ग ने अनिश्चितता का यह सिद्धांत इस देश के वैदिक दर्शन से सीखा। हाइजेनबर्ग 1929 में भारत आया और रवींद्र नाथ टैगोर से भेंट की थी। इस बैठक में उसने टैगोर के विभिन्न वैदिक दर्शन और सैद्धांतिक भौतिकी से संबंधित विषयों पर विचार - विमर्श किया। हाइजेनबर्ग के सहायक और ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक Fritj of Capra ने अपनी पुस्तक 'असामान्य बुद्धि' में कोई पृष्ठ 42-43 पर स्वयं लिखा है,"1929 में हाइजेनबर्ग ने प्रसिद्द भारतीय कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के अतिथि रूप में भारत में कुछ समय बिताया है। जिनके साथ उसने विज्ञान और भारतीय दर्शन के बारे में लंबी चर्चा की थी। भारतीय विज्ञान के इस परिचय से हाइजेनबर्ग ने दिव्य दृष्टि पाई। उसने मुझे बताया कि सापेक्षता, परस्पर जुडाव, मान्यता और भौतिक वास्तविकता के मुलभुत पक्षों, के रूप में नश्वरता, जो स्वयं के और उसके साथी के लिए इतना कठिन था, अनस्थिरता भौतिकविदों, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का आधार था, अब वह स्पष्ट होने लगे है। ।उन्होंने कहा, 'कुछ विचार जो कि बुद्धि से परे लगते थे 'टैगोर के साथ इन वार्तालापों के बाद अचानक और अधिक विवेकमय लगने लगा। यह मेरे लिए एक बड़ा सहयोग था।
और यूरोप की सर्न प्रयोगशाला में गत वर्ष जुलाई में भगवान के कण को खोजा गया, जिनका वैज्ञानिक नाम हिग्स बोसॉन है। यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खोज माना गया है। और यह कहा जा रहा है कि इस खोज से 21 वीं सदी के मानव जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक समान सिद्धांत से प्रेरणा लेने के भारत के महान वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के द्वारा 70-80 वर्ष पहले स्थापित किये गये आधार पर इस कण को खोजा गया था। इस कण के नाम में 'बोसॉन' शब्द सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम से लिया गया है। एस.एन. बोस के बारे में यह कहा जाता है कि वह सदा ध्यान की अवस्था में रहते थे और जिससे वैज्ञानिक समस्याओं को तत्परता के साथ हल कर लेते थे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक नील बोह्र ने भी बोस की इस क्षमता को स्वीकार किया था।
इसका अर्थ यह है कि आज के डिजिटल क्रांति का मूलभूत सिद्धांत हमारे पास था और भविष्य की क्रांति के मूलभूत सिद्धांत भी हमारे पास है। औपनिवेशिक मानसिकता के चलते बनी नीतियों के कारण हमने कभी 'विज्ञान के मूलभूत अनुसंधान' पर नहीं ध्यान दिया। और यह सोचने में भी हमें डर लगता है कि इन मौलिक शोध में हमारे पारंपरिक ज्ञान के आधार है।
जब हम सत्ता में आयेंगे तो हम मौलिक विज्ञान और भारतीय विज्ञान में अनुसंधान को बढ़ावा देंगे। हम मौलिक विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में हमारे पारंपरिक ज्ञान के वैज्ञानिक पक्ष के अनुसंधान को भी बढ़ावा देंगे। 21वीं सदी में
विश्व का नेतृत्व करने की भारतीय क्षमता केवल तब सामने आयागी, जब मौलिक विज्ञान और मूलभूत प्रौद्योगिकी हमारे अपने होगे।
हम मौलिक विज्ञान में अनुसंधान के द्वारा नए स्वदेशी प्रौद्योगिकी निर्माण कर सकते हैं। रक्षा के क्षेत्र में हम इस तकनीक के माध्यम से हथियार बनाने में आत्मनिर्भर बन सकते है। इसलिए हमारी वरीयता अन्य रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना होगा। यह रक्षा को सुदृद बनाने के साथ और करोड़ों डॉलर की बचत के लिए होगा।
हम कहने का अर्थ यह है कि
विश्व को भारत के योगदान के रूप में देखे जा रहे, आयुर्वेद योग और पर्यावरण संरक्षण तो है। गणित और विज्ञान के क्षेत्र में भी
विश्व को नै खोजें देने की क्षमता भारत के पारंपरिक ज्ञान के है गुलामी के काल में हम भूल गए थे।
गुलामी के काल में गठित कांग्रेस, उस गुलामी मानसिकता से बाहर आने में असफल रही है। इसलिए विश्व स्तर पर भारत की वास्तविक क्षमता स्थापित करने का आत्म विश्वास कांग्रेस में कभी था ही नहीं।
मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यदि हम सत्ता में आते हैं तो भाजपा के पास वह दृष्टी है जो उसे विश्व के बौद्धिक पूंजी का केंद्र और उससे भी आगे यह भारत को फिर से जगतगुरू स्थापित कर सकते हैं।
वैकल्पिक अर्थव्यवस्था:
हम सभी ने 20 वीं सदी के अंतिम दशक में साम्यवाद का पतन देखा है और 21वीं सदी के प्रथम दशक में पूंजीवाद हीनता है आज इस सदी में ही
विश्व को एक नई वैकल्पिक अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है। उस विकल्प का आधार केवल भारत के पास है। हमें यह समझने की आवश्यकता है। इस विकल्प के आधार भारत द्वारा
विश्व के इतिहास में दी गई दो सबसे बड़ी विरासत, भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी के विचारों में निहित है। जबकि बुद्ध ने कहा 'सम्यक विचार' और 'सम्यक कर्म' अर्थात बुद्ध के राजनीतिक और आर्थिक दर्शन मध्य मार्ग का है। कि किसी भी विचार के चरम दृश्य में नहीं ले जाना है -चाहे वह पूंजीवाद या साम्यवाद है। पं दीनदयाल उपाध्याय व दत्तोपंत ठेंगडी के आर्थिक दर्शन का आधार भी यही था।
पश्चिम उन्मुख विकास के दोष में केवल भारत नहीं बल्कि विश्व विभिन्न जटिल समस्याओं से घिरा।
उपभोक्तावाद के अतिरेक से बचते है, बचने की उपयुक्त प्रवृति को बढ़ाते प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए, सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए, हमारे नैतिक मूल्यों की रक्षा करने वाली एक नई स्वदेशी अर्थव्यवस्था हमारे आर्थिक विकास का वैकल्पिक प्रारूप होगा। यह वैश्वीकरण का विरोध नहीं होगा, किन्तु उसके दोषों को सुधारने का प्रयास होगा और पूरे
विश्व को एक नई दिशा देने के लिए काम करेंगा।
तो 21वीं सदी के लिए भाजपा की दृष्टि है:
** वैकल्पिक प्रारूप व्यय नहीं बचत के आधार पर वैकल्पिक आर्थिक विकास
** मौलिक विज्ञान में अनुसंधान
** आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन
** पारंपरिक भारतीय ज्ञान में अनुसंधान (जैसे जैविक खेती एवं आयुर्वेद)
** 'भारत को
विश्व की बौद्धिक एवं कृषि राजधानी बनाने के लिए
** तब यह गरीबी और बेरोजगारी उन्मूलन के साथ भारत
विश्व में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरेगा। ** भारत को मानव जीवन के उच्चतम मूल्यों के जिन प्रतीकों के लिए भगवान राम, कृष्ण भगवान से लेकर बुद्ध और महात्मा गांधी के रूप में जाना जाता है, उन को स्थापित किया जाएगा।
और भी हैं... इक्कीसवीं शताब्दी हमारी होगी: भाजपा राष्ट्रीय परिषद की बैठक 2 -3, मार्च 2013 , पूरा पदें http://yuvaadarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
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आर्थिक संकल्प मुद्रास्फीति की दर और भ्रष्टाचार यूपीए सरकार की पहचान । पूरा पदें,
सम्बद्ध वीडियो देखें :
1) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=-xhUX3Moubc
2) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=GCHwfRKsFIw#!
3) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=3DR3WO0EfPg
4)
राजनैतिक प्रस्ताव यूपीए प्रधानमंत्री रूप में डा. मनमोहन सिंह के और श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में अनियंत्रित भ्रष्टाचार को परिभाषित यूपीए सरकार। पूरा पदें, वीडियो
1) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=EkoSiWy2YNY
2) http://www.bjp.org/index.php?option=com_content&view=article&id=8598:points-made-shri-m-venkaiah-naidu-while-intervening-in-debate-on-political-resolution&catid=68:press-releases&Itemid=494
आर्थिक प्रस्ताव पूरा पदें,/
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विश्वगुरु रहा वो भारत,
इंडिया के पीछे कहीं खो गया |
इंडिया से भारत बनकर ही,
विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक